Thursday, August 14, 2025

श्मशान घाट पर लावारिस शवों की अस्थियों से भरे पड़े हैं ड्रम, 18 महीने से नहीं हुआ विसर्जन

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: नगर निगम की लापरवाही के चलते सेक्टर 25 के श्मशान घाट पर लावारिस शवों की अस्थियों से भरे दो बड़े ड्रम बीते कई महीनों से खुले में पड़े हैं, लेकिन अब तक नगर निगम के किसी भी अधिकारी ने इनके विसर्जन की जिम्मेदारी नहीं ली है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, अस्थियों ये ड्रम जनवरी 2024 के बाद से धीरे-धीरे भरते चले गए, जब लावारिस शवों का अंतिम संस्कार तो कर दिया गया, लेकिन अस्थियों के विसर्जन की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप हो गई। अब स्थिति यह हो गई है कि अस्थियों का ढेर इन ड्रमों में जमा है, जिससे आसपास के लोगों की धार्मिक भावना भी आहत हो रही है और स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी उत्पन्न हो रहे हैं।
नगर निगम द्वारा कहने को तो  लावारिस शवो के संस्कार ओर अस्तियों के विषर्जन के लिए नोडल ऑफिसर की नियुक्ति की गई है. लेकिन  भूमिका सिर्फ कागजों तक सीमित नजर आ रही है। सेक्टर 25 के श्मशान घाट में पड़े अस्थि-ड्रम नगर निगम के इस दावे की पोल खोल रहे हैं कि “विसर्जन की व्यवस्था जारी है।” अभी तक न तो विसर्जन की कोई तारीख तय की गई है, न ही हरिद्वार भेजने के लिए कोई एजेंसी या प्रक्रिया तय की गई है।
धार्मिक अपमान और मानवीय चिंता: 
स्थानीय नागरिक और सामाजिक संगठनों का कहना है कि अस्थियों को महीनों तक यूं खुले में पड़े रहने देना न केवल धार्मिक मान्यताओं का अपमान है, बल्कि यह मृत आत्माओं के प्रति असंवेदनशीलता की भी पराकाष्ठा है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, अस्थियों का शीघ्र विसर्जन आवश्यक होता है ताकि आत्मा को शांति मिल सके।
प्रशासन का टालमटोल रवैया: 
जब मीडिया ने नगर निगम के संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया, तो स्पष्ट जवाब देने से बचते हुए यह कहा गया कि “प्रक्रिया चल रही है।” लेकिन सेक्टर 25 में पड़े ड्रमों की हालत देखकर यह साफ है कि न कोई प्रक्रिया चल रही है, न ही कोई तैयारी।
जनता की मांग: 
सेक्टर 25 के निवासी अब इस मुद्दे को लेकर मुखर हो गए हैं। वे मांग कर रहे हैं कि:
-अस्थियों का शीघ्र विसर्जन सुनिश्चित किया जाए
– दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो
– भविष्य में समयबद्ध अस्थि-विसर्जन के लिए स्थायी योजना बनाई जा
ऑल इंडिया सेवा समिति ने छोड़ा जिम्मा:
इससे पहले ऑल इंडिया सेवा समिति नामक एक सामाजिक संस्था लावारिस शवों का अंतिम संस्कार और अस्थियों का समय पर हरिद्वार जाकर विसर्जन करती थी। यह संस्था लंबे समय से नगर निगम के साथ समन्वय में कार्य कर रही थी। लेकिन 2024 में नगर निगम के अधिकारियों की असहयोगात्मक रवैये और उदासीनता से त्रस्त होकर समिति ने लावारिस शवों के संस्कार और अस्थि विसर्जन का काम बंद करने का निर्णय लिया।
नगर निगम का वादा अधूरा:
इसके बाद नगर निगम ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि उन्होंने एक नोडल ऑफिसर की नियुक्ति की है, जो लावारिस शवों का संस्कार और अस्थियों का विधिवत विसर्जन सुनिश्चित करेगा। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। नोडल ऑफिसर की तैनाती के बावजूद, आज तक न तो अस्थियों का संग्रहण व्यवस्थित ढंग से हो रहा है और न ही उनका विसर्जन। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या यह नोडल अधिकारी सिर्फ कागज़ों पर ही तैनात है?
धार्मिक संगठनों और आम जनता में रोष:
स्थानीय धार्मिक संगठनों, संत समाज और नागरिक समूहों ने इस स्थिति पर गहरा आक्रोश जताया है। कई संगठनों ने इसे धार्मिक अनादर और असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा बताया है। नागरिकों का कहना है कि जब एक व्यक्ति की पहचान नहीं होती, तब भी उसके साथ मानवीय गरिमा के साथ अंतिम संस्कार और उसकी आत्मा की शांति के लिए धार्मिक कर्मकांड पूरे करने की जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की होती है।
प्रशासनिक चुप्पी:
नगर निगम के उच्च अधिकारियों से इस मुद्दे पर पूछे जाने पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाया है। जब संवाददाता ने निगम के संबंधित अधिकारी से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने टालमटोल करते हुए केवल इतना कहा कि “जल्द ही प्रक्रिया शुरू की जाएगी।” हालांकि, ‘जल्द’ शब्द अब एक साल से अधिक समय से सुनाई दे रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। इससे साफ है कि नगर निगम इस संवेदनशील विषय को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है।
– जसबीर सिंह बंटी, सीनियर डिप्टी मेयर, नगर निगम: “एक भगीरथ थे, जिन्होंने अस्थियों के विसर्जन के लिए हजारों साल तपस्या कर माँ गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों की मुक्ति करवाई थी। आज एक नगर निगम अधिकारी हैं जो इन अस्थियों को यूँ ही रखे हुए हैं, जो कि आस्था के साथ खिलवाड़ है। यदि अस्थियों का विसर्जन शीघ्र नहीं कराया गया, तो यह मुद्दा जनरल हाउस मीटिंग में उठाया जाएगा और जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की माँग की जाएगी।”
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