भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: वाहनों की सुरक्षा के लिए शुरू किया गया पैनिक बटन सिस्टम अब खुद प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गया है। स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (एसटीए) द्वारा तैयार किया गया 24 घंटे सातों दिन चलने वाला कंट्रोल रूम, जिसे 23 नवंबर 2023 को शुरू किया गया था, लगातार पैनिक बटन की बेवजह कॉल्स से जूझ रहा है। दो साल आठ महीने के भीतर हजारों कॉल्स दर्ज की गईं, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इनमें से एक भी कॉल वास्तविक आपात स्थिति से संबंधित नहीं थी।
पैनिक बटन दबते ही सिस्टम के तहत दो जगह कॉल जाती थी, एक स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (एसटीए) के कंट्रोल रूम में और दूसरी सीधी चंडीगढ़ पुलिस के कंट्रोल रूम में। कॉल के बाद दोनों विभाग संबंधित गाड़ी के रजिस्टर्ड नंबर पर संपर्क करते थे ताकि यह पता लगाया जा सके कि किसी तरह की कोई आपात स्थिति तो नहीं है। लेकिन हर बार जवाब एक जैसा ही मिला—बटन गलती से दब गया।
23 नवंबर 2023 से लेकर अब तक पैनिक बटन तो हजारों बार दबाया गया, लेकिन सभी कॉल बेवजह और बिना किसी वास्तविक इमरजेंसी के निकलीं। इस स्थिति को देखते हुए चंडीगढ़ पुलिस और स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब पैनिक बटन दबने पर कॉल सबसे पहले एसटीए कंट्रोल रूम में जाएगी। वहां से यदि कॉल को वास्तविक इमरजेंसी माना जाएगा, तभी उसे चंडीगढ़ पुलिस को फॉरवर्ड किया जाएगा।
बेवजह की पैनिक बटन दबने से आने वाली कॉल से न सिर्फ चंडीगढ़ पुलिस का कीमती समय बर्बाद हो रहा था, बल्कि असली आपात स्थिति में समय पर कार्रवाई की संभावना भी खतरे में पड़ सकती थी। पुलिस को हर बेवजह कॉल पर प्रतिक्रिया देने के लिए न सिर्फ संसाधन झोंकने पड़ते थे, बल्कि समय भी बर्बाद हो रहा था। इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए हाल ही में चंडीगढ़ पुलिस और स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब पैनिक बटन दबने के बाद आने वाली कॉल सीधे पुलिस को नहीं भेजी जाएगी। पहले कंट्रोल रूम (एसटीए ) की टीम यह जांच करेगी कि क्या कॉल वास्तव में आपात स्थिति की है या नहीं। यदि कंट्रोल रूम को स्थिति गंभीर लगती है या वास्तविक इमरजेंसी की पुष्टि होती है, तभी उस कॉल को चंडीगढ़ पुलिस के कंट्रोल रूम को फॉरवर्ड किया जाएगा।
क्यों जरूरी था बदलाव?
पैनिक बटन की शुरुआत एक अच्छा और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला कदम था, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि 99.9 प्रतिशत कॉल्स सिर्फ गलती से बटन दबने की वजह से आई हैं। इन बेवजह कॉल्स से पुलिस को परेशान होना पड़ता था । स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के सूत्रों के मुताबिक हर बार जब पैनिक बटन दबता है, तो हमारी टीम अलर्ट हो जाती है और तुरंत रिस्पॉन्स की तैयारी करती है। लेकिन जब हर बार यही सुनने को मिले कि बटन गलती से दब गया, तो इससे न केवल हमारे समय की बर्बादी होती है बल्कि असली घटनाओं से ध्यान हट सकता है। इसलिए यह बदलाव बहुत जरूरी था।
कंट्रोल रूम की नई भूमिका:
अब एसटीए के कंट्रोल रूम की जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक अहम हो गई है। जैसे ही पैनिक बटन दबेगा, सबसे पहले कॉल एसटीए कंट्रोल रूम को ही मिलेगी। एसटीए के कंट्रोल रूम में तैनात अधिकारी वाहन मालिक से संपर्क करेंगे, स्थिति की गंभीरता का मूल्यांकन करेंगे और अगर कोई इमरजेंसी नहीं होती तो मामला वहीं निपटा दिया जाएगा। केवल वही कॉल्स जिन्हें अधिकारी वाजिब समझेंगे और जिनमें कोई असली खतरा होगा, वही चंडीगढ़ पुलिस को भेजी जाएंगी।
जनता के लिए चेतावनी:
एसटीए द्वारा वाहन चालकों और आम लोगों से अपील की जा चुकी हैं कि वे पैनिक बटन का इस्तेमाल बेहद ज़रूरी हालात में ही करें। बटन का अनावश्यक प्रयोग करने पर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है। विभाग अब इस सिस्टम की मॉनिटरिंग और भी सख्ती से करेगा। इस विषय पर स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी अमित कुमार से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।