हरियाणा में सरकारी भर्तियों को लेकर बड़ा फैसला सामने आया है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उन सभी सरकारी भर्तियों को रद्द कर दिया है, जिनमें सामाजिक और आर्थिक आधार पर युवाओं को बोनस अंक दिए गए थे। यह फैसला खास तौर पर उन युवाओं को प्रभावित करेगा, जिन्हें साल 2019 के बाद इसी नीति के तहत सरकारी नौकरी मिली थी। ऐसे करीब 10,000 कर्मचारी अब सीधे तौर पर इस आदेश की चपेट में आ गए हैं।
हालांकि, राहत की बात यह है कि हाईकोर्ट ने इन कर्मचारियों को तुरंत नौकरी से निकालने से इनकार कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि इन युवाओं की कोई गलती नहीं थी, इसलिए सरकार उन्हें फिलहाल कॉन्ट्रैक्ट आधार पर नौकरी पर बनाए रखेगी। जब भविष्य में नियमित पद खाली होंगे, तो इन्हें नियमानुसार मौका दिया जाएगा।
हाईकोर्ट की डबल बेंच, जिसमें जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस मीनाक्षी मेहता शामिल थे, ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने सरकार की उस नीति को पूरी तरह असंवैधानिक बताया, जिसमें बिना किसी ठोस डाटा के केवल सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर 5 बोनस अंक दिए गए थे। कोर्ट का कहना है कि इस नीति ने समान अवसर और योग्यता के सिद्धांत को नुकसान पहुंचाया है।
फैसले में कोर्ट ने “नो फाल्ट थ्योरी” को भी लागू किया है, यानी जिन उम्मीदवारों ने पूरी चयन प्रक्रिया पार की थी और लंबे समय से काम कर रहे हैं, उन्हें उनकी नौकरी से अचानक हटाना न्यायसंगत नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि गलती कर्मचारियों की नहीं बल्कि सरकार की नीति में थी। यह नियम पहले से आरक्षण की व्यवस्था को दरकिनार करता था और 50% की आरक्षण सीमा का उल्लंघन करता था।
राज्य सरकार ने कोर्ट में यह तर्क दिया था कि यह नीति समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए बनाई गई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि ऐसी नीतियां योग्यता और संविधान की भावना के विपरीत होती हैं।
गौरतलब है कि यह नीति 2021 में लागू की गई थी, जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े युवाओं को 5 बोनस अंक देने का निर्णय लिया था। इसका लाभ उन परिवारों को मिलता था जिनकी सालाना आय 1.80 लाख से कम थी और परिवार में कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं था।
अब हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार को सभी प्रभावित भर्तियों की मेरिट सूची दोबारा तैयार करनी होगी। इसके चलते हजारों युवाओं की सरकारी नौकरी अनिश्चितता के घेरे में आ गई है। हालांकि, कोर्ट ने कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट पर रखने का रास्ता दिखा कर उन्हें पूरी तरह बेरोजगार होने से बचा लिया है।