Thursday, August 14, 2025

चंडीगढ़ में शराब ठेका विवाद पर आज हाईकोर्ट में सुनवाई: टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप, सुप्रीम कोर्ट ने ठेके बंद करने के हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक

चंडीगढ़ में शराब ठेकों की अलॉटमेंट प्रक्रिया को लेकर उठा विवाद अब अदालत तक पहुंच गया है। इस मामले में आज पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अहम सुनवाई होनी है। इससे पहले हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल तक शहर के सभी शराब ठेकों को बंद रखने का आदेश दिया था। लेकिन इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है और शराब की दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी है।

दरअसल, हर साल 1 अप्रैल को चंडीगढ़ में नई आबकारी नीति लागू होती है और उसी दिन नए शराब ठेकेदारों को ठेके अलॉट किए जाते हैं। लेकिन इस बार टेंडर प्रक्रिया को लेकर कई व्यापारियों ने गंभीर सवाल खड़े किए और हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि 97 में से 91 ठेके एक ही कारोबारी ग्रुप को दे दिए गए, जोकि नीति के खिलाफ है।

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शराब व्यापारियों ने दावा किया कि प्रशासन ने टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती। आबकारी नीति के अनुसार, किसी भी व्यक्ति, फर्म या कंपनी को 10 से अधिक शराब की दुकानें लेने की अनुमति नहीं है, ताकि किसी एक का एकाधिकार न हो। लेकिन प्रशासन ने इस नियम की अनदेखी कर एक ही ग्रुप को अपने परिवार, साथियों और कर्मचारियों के नाम पर ज्यादा दुकानें अलॉट कर दीं। इससे शराब के व्यापार पर उनका असामान्य नियंत्रण हो गया है।

हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पहले शराब की दुकानों को 3 अप्रैल तक बंद रखने और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। लेकिन इसके खिलाफ प्रशासन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, जहां कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने ठेके बंद करने का कोई ठोस कारण नहीं बताया, इसलिए यह रोक उचित नहीं है।

अब यह मामला दोबारा हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए लगा है। 4 अप्रैल को इस पर विस्तार से सुनवाई होगी, जिसमें यह तय होगा कि टेंडर प्रक्रिया में वाकई गड़बड़ी हुई है या नहीं। यदि आरोप सही पाए गए, तो शराब ठेकों की अलॉटमेंट प्रक्रिया पर फिर से विचार किया जा सकता है।

फिलहाल, पूरे चंडीगढ़ के शराब व्यापार से जुड़े कारोबारी और आम लोग इस मामले की अगली कानूनी कार्रवाई पर नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि इसका असर सीधा शराब के रेट, वितरण और कारोबार पर पड़ेगा। वहीं प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं कि उसने टेंडर प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से क्यों नहीं संपन्न कराया।

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