रवि यादव, चंडीगढ़ दिनभर: पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज (पीजीजीसी-11), सेक्टर 11, चंडीगढ़ में ग्यान सेतु और इंटरनल क्वालिटी एश्योरेंस सेल (IQAC) के सहयोग से “चीन के साथ संबंधों को पुनर्संतुलन” विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में नीति निर्माताओं, सैन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों ने भाग लिया और भारत-चीन संबंधों में आ रही चुनौतियों और क्षेत्रीय स्थिरता पर विचार-विमर्श किया।
संगोष्ठी में पूर्व सेना कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र हूडा (सेवानिवृत्त) ने मुख्य भाषण दिया। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी चीन नीति दोबारा व्यवस्थित करनी होगी, क्योंकि भारत-चीन संबंधों की अस्थिरता एशिया की सुरक्षा पर असर डाल सकती है। उन्होंने पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति पर भी चिंता जताई और कहा कि इससे भारत की भू-राजनीतिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल अनिल आहूजा (सेवानिवृत्त) ने भी गालवान संघर्ष के बाद की स्थिति पर बात की। उन्होंने कहा कि भारत को LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) से सैनिकों की वापसी को लेकर सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा जरूरी है, लेकिन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था भी एक-दूसरे पर निर्भर है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
भू-राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के. जे. सिंह ने कहा कि चीन की बढ़ती ताकत को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उन्होंने चीन को “छाया से उभरती शक्ति” बताया और कहा कि चीन, पाकिस्तान की तकनीकी शक्ति बढ़ाने में मदद कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन बदल सकता है।
संगोष्ठी में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने इसे चीन के अपने रणनीतिक हितों को मजबूत करने की योजना बताया। चर्चा में यह भी सामने आया कि सीमा विवाद, अलग शासन प्रणाली और चीन पर भारत की तकनीकी निर्भरता दोनों देशों के बीच भरोसे और सहयोग में सबसे बड़ी बाधा हैं।
कार्यक्रम के अंत में कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. (डॉ.) रमा अरोड़ा ने इस संगोष्ठी की सराहना की। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम भविष्य के नेताओं को अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को समझने और सही नीतियां बनाने में मदद करते हैं। संगोष्ठी में यह भी सलाह दी गई कि भारत को चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए कूटनीति, तकनीकी नवाचार और क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए।
यह संगोष्ठी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए भारत की भविष्य की रणनीतियों को आकार देने में सहायक साबित हुई और पीजीजीसी-11 की नीति निर्माण में सक्रिय भागीदारी को मजबूत किया।