भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: प्रशासन की स्मॉल फ्लैट स्कीम 2006 एक बार फिर गंभीर विवादों के घेरे में आ गई है। कॉलोनी नंबर-4 में रहने वाले एक ही परिवार के दो सदस्यों को इस योजना के अंतर्गत दो अलग-अलग फ्लैट आवंटित किए जाने का मामला सामने आया है, जो न केवल योजना के नियमों का उल्लंघन है, बल्कि फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग की भी आशंका को जाहिर करता है।
शिकायतकर्ता प्रेम यादव ने इस मामले को सार्वजनिक करते हुए चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि एक ही झुग्गी नंबर 134 में रहने वाले जोगिंदर राय और उनके पुत्र गुरदेव को अलग-अलग फ्लैट आवंटित कर दिए गए, जबकि योजना के नियम स्पष्ट रूप से एक परिवार इकाई को सिर्फ एक फ्लैट की अनुमति देते हैं।
क्या है स्मॉल फ्लैट स्कीम 2006?
चंडीगढ़ में झुग्गियों की बढ़ती संख्या और अनियमित बस्तियों के विस्तार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से प्रशासन ने वर्ष 2006 में स्मॉल फ्लैट स्कीम की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य था कि झुग्गी में रहने वाले पात्र नागरिकों को व्यवस्थित रूप से मलोया, धनास आदि स्थानों पर छोटे फ्लैटों में स्थानांतरित किया जाए, जिससे उन्हें बेहतर जीवनयापन के अवसर मिल सकें।
इस योजना के अंतर्गत पात्रता के लिए कुछ मूलभूत शर्तें निर्धारित की गई थीं:
-व्यक्ति का नाम 2006 के बायोमेट्रिक सर्वे में दर्ज होना चाहिए।
-उसका नाम 1 जनवरी 2006 की वोटर लिस्ट में उसी झुग्गी के पते से होना चाहिए, जिसे चिन्हित किया गया है।
-यदि परिवार के किसी भी सदस्य के नाम पर या आश्रित के नाम पर पहले से कोई मकान या झुग्गी है, तो वह केवल एक ही फ्लैट का पात्र होगा।
-एक ही परिवार इकाई को योजना की सभी शर्तें पूरी करने पर अधिकतम एक फ्लैट ही मिल सकता है।
झुग्गी 134 से दो फ्लैट:
शिकायत के अनुसार, कॉलोनी नंबर-4 की झुग्गी संख्या 134 में जोगिंदर राय और उनका पुत्र गुरदेव साथ-साथ रहते थे। बावजूद इसके, दोनों को अलग-अलग फ्लैट आवंटित कर दिए गए। जोगिंदर राय को मलोया के फ्लैट नंबर 267/2 और गुरदेव को मलोया के फ्लैट नंबर 180/2 आवंटित किया गया। शिकायत के मुताबिक गुरदेव को झुग्गी संख्या 134-बी के आधार पर फ्लैट मिला, जबकि झुग्गी नंबर 134-बी का कोई भौतिक या प्रशासनिक अस्तित्व नहीं है। गुरदेव के सभी दस्तावेज जैसे वोटर आईडी, राशन कार्ड, और अन्य पहचान पत्र झुग्गी संख्या 134 के पते पर ही बने हैं, जो उनके पिता जोगिंदर राय का पता भी है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि 2009 में आधार कार्ड लॉन्च हुआ था, जबकि योजना की पात्रता 2006 के दस्तावेजों पर आधारित थी, ऐसे में आधार कार्ड पर दर्ज नया पता किसी भी तरह से पात्रता सिद्ध नहीं कर सकता।

फर्जीवाड़े और साजिश की आशंका:
शिकायतकर्ता प्रेम यादव ने इस प्रकरण को एक सुनियोजित साजिश करार देते हुए कहा है कि इसमें संभवतः बायोमेट्रिक सर्वे में गड़बड़ी, झूठे पते, और दस्तावेजों में हेरफेर के जरिए दो फ्लैट हासिल किए गए हैं।
उन्होंने यह भी आशंका जताई है कि यह मामला व्यापक स्तर पर हुई गड़बड़ियों का एक उदाहरण भर हो सकता है। यदि जांच की जाए तो इस प्रकार के कई मामले सामने आ सकते हैं, जिसमें वास्तविक पात्रों को वंचित कर अपात्रों को लाभ पहुंचाया गया हो।
शिकायत पहुँची उच्च अधिकारियों तक:
इन अधिकारियों को भेजी शिकायत:
– पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाबचंद कटारिया
– सीएचबी के चेयरमैन
– मुख्य सचिव राजीव वर्मा
– गृह सचिव मनदीप सिंह बराड़
– सीएचबी के सीईओ
शिकायत के साथ 2006 की वोटर लिस्ट की प्रतियां भी संलग्न की गई हैं, जिनमें यह स्पष्ट है कि जोगिंदर राय और गुरदेव दोनों एक ही झुग्गी संख्या 134 पर दर्ज हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि वे एक ही परिवार इकाई से हैं और योजना के अनुसार उन्हें केवल एक फ्लैट ही मिलना चाहिए था।
योजना का उद्देश्य और वास्तविकता में फर्क:
स्मॉल फ्लैट स्कीम 2006 का उद्देश्य था कि झुग्गीवासियों को सुरक्षित, स्थायी और स्वच्छ आवास उपलब्ध कराया जाए। लेकिन यदि पात्रता की अनदेखी कर फर्जी लाभ लेने वाले लोग सामने आते हैं, तो यह योजना की पारदर्शिता और सफलता दोनों को आघात पहुंचाता है।
शिकायतकर्ता का कहना है, “आज भी कॉलोनी नंबर-4 के दर्जनों परिवार घर के लिए दर-दर भटक रहे हैं, जबकि कुछ लोगों ने नियमों का उल्लंघन कर योजना का लाभ दोहरी तरह से उठा लिया। यह अन्याय है और इसका समाधान उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच ही है।”