Thursday, August 14, 2025

मेयर बबला तो समय रहते निगम सदन में लाई थी प्रस्ताव, विपक्षी दलों के पार्षदों की वजह से नहीं हुआ था पास

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: सेक्टर से लेकर गांव तक, गड्ढों से पटी सडक़ों और अधूरी मरम्मत की वजह से स्थानिय लोग परेशान हो रहे हैं। सवाल उठता है कि इसकी जि़म्मेदारी किसकी है? नगर निगम? या मेयर? सच्चाई इसके कहीं अधिक राजनीतिक है।

नगर निगम की मेयर हरप्रीत कौर बबला ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए एक ठोस प्रस्ताव निगम सदन में रखा था। इस प्रस्ताव में उन्होंने निगम में फंड की कमी को देखते हुए , शहर की सेक्टरों और गांवों की अंदरूनी सडक़ों की मरम्मत और निर्माण कार्य की जिम्मेदारी तय समय के लिए सीधे चंडीगढ़ प्रशासन को सौंपने की बात रखी थी। उनका तर्क था कि चंडीगढ़ प्रशासन के पास पर्याप्त फंड , संसाधन, मशीनरी, इंजीनियरिंग स्टाफ और पारदर्शी प्रक्रिया है जिससे इन सडक़ों की मरम्मत तेज़, बेहतर और दीर्घकालिक रूप से की जा सकती है। लेकिन यह प्रस्ताव निगम में बैठे कुछ पार्षदों को रास नहीं आया। विपक्षी दलों के पार्षदों ने इस प्रस्ताव का जमकर विरोध किया। नतीजा यह हुआ कि यह प्रस्ताव पास ही नहीं हो सका। मेयर बबला ने सदन में हर संभव प्रयास किया कि पार्षद शहर की जनता के हित में सोचें और आपसी मतभेदों को दरकिनार कर विकास के इस महत्त्वपूर्ण एजेंडे को पारित करें। लेकिन पार्षदों ने राजनीति को प्राथमिकता दी, और जनता की ज़रूरतों को हाशिए पर रख दिया।

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साफ-सुथरी सडक़े शहर की पहचान:
एक समय था जब चंडीगढ़ साफ-सुथरी सडक़ें, चौड़ी लेन और सुंदर पेवमेंट शहर की पहचान थे। लेकिन आज वही शहर, सेक्टर से लेकर गांव तक, गड्ढों से पटी सडक़ों और अधूरी मरम्मत के चलते अपनी पहचान खोता जा रहा है। सडक़ों की हालत इस कदर खराब हो चुकी है कि लोगों को हर दिन जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ रहा है। चंडीगढ़ के सेक्टरों और गांवों की सडक़ों में गहरे गड्ढे बन चुके हैं, जिनमें बरसात के मौसम में पानी भर जाता है और इससे हादसों की संख्या में तेज़ी से बढ़ रही है। स्थिति यह है कि कहीं टूटी सडक़ें स्कूली बच्चों के लिए खतरा बनी हुई हैं, तो कहीं दोपहिया वाहन चालकों के लिए मौत का गड्ढा साबित हो रही हैं।

पार्षदों की राजनीति से अटका विकास, अब जनता भुगत रही है खामियाजा:
आज चंडीगढ़ के सेक्टरो व गांव की सडक़ों पर हालात इतने खराब हो चुके हैं कि गाड़ी चलाना या पैदल चलना दोनों ही जोखिम भरा हो गया है। सबसे अधिक परेशानी बुजुर्गों, बच्चों और दुपहिया वाहन चालकों को हो रही है। बरसात के मौसम में गड्ढे पानी से भर जाते हैं और कई बार सडक़ और गड्ढा पहचानना तक मुश्किल हो जाता है। इससे वाहन फिसलने, पैदल चलने वालों के गिरने और जानलेवा हादसों की घटनाएं सामने आ रही हैं। शहरवासी गुस्से में हैं। उनका
कहना है कि जब चुनाव के समय पार्षद हर गली में वोट मांगने आते हैं, तो फिर जनता की परेशानियों को नजरअंदाज़ क्यों किया जा रहा है?

पेचवर्क बन गया मज़ाक:
फंड न होने की वजह से नगर निगम की ओर से सडक़ों की मरम्मत के नाम पर सिर्फ खानापूर्ती हो रही है। जहां सडक़ों की हालत खराब होती है, वहां एक झटपट पेचवर्क कर दिया जाता है। लेकिन यह पेचवर्क कुछ ही दिनों में दम तोड़
देता है और गड्ढे पहले से भी बदतर हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पेचवर्क केवल अस्थायी समाधान है और वह भी तभी कारगर होता है जब बारिश का मौसम न हो और तकनीकी गुणवत्ता का पालन हो। लेकिन यहां तो न गुणवत्ता है,
न निगरानी।

जनता पूछ रही है सवाल:
अब जनता जानना चाहती है कि जब मेयर समाधान लेकर आई थीं, तो पार्षदों ने उनका साथ क्यों नहीं दिया? क्या जनता की भलाई से ज्यादा जरूरी है राजनीति? क्या गुटबाजी और टकराव के चलते पूरा शहर भुगतेगा?

सडक़ों की मरम्मत मूलभूत आवश्यकता:
सडक़ों की मरम्मत एक मूलभूत आवश्यकता है, न कि कोई राजनीतिक मुद्दा। पार्षदों को यह समझना होगा कि अगर वे आपसी खींचतान में ही उलझे रहेंगे, तो जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी।

अब क्या होगा आगे?
इस पूरे मसले ने नगर निगम की कार्यशैली और राजनीतिक प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। चंडीगढ़ के लोग अब इंतज़ार कर रहे हैं कि क्या अगली सदन बैठक में पार्षद अपने रवैये पर पुनर्विचार करेंगे या फिर गड्ढों से भरी सडक़ें ही इस शहर की नई पहचान बन जाएंगी।

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