चंडीगढ़: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को प्रोफेसर अशीम कुमारघोष को हरियाणा का 19वां राज्यपाल नियुक्त किया है। घोष इससे पहले पश्चिमबंगाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर भी रह चुके हैं। वे पूर्व राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय का स्थान लेंगे, जो 7 जुलाई 2021 से इस पद पर कार्यरत थे। अशीम घोष मूल रूप से पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के निवासी हैं। वे राज्य से जुड़े तीसरे व्यक्ति हैं जिन्हें हरियाणा का राज्यपाल बनाया गया
है। इससे पहले बीरेंद्र नारायण चक्रवर्ती और हरी आनंद बरारी भी बंगाल सेताल्लुक रखते थे।
राजनीति में लंबा अनुभव:
1999 से 2002 तक पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रहे अशीम घोष ने 2 जून 2013 को हावड़ा लोकसभा उपचुनाव में भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जो अंबिका बनर्जी के निधन के बाद खाली हुई थी। हालांकि उन्हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। घोष लंबे समय तक कोलकाता के मनिन्द्र चंद कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वरिष्ठ मंत्री तपन सिखदर के करीबी रहे। बताया जाता है कि सिखदर ने ही उन्हें राजनीति में लाने का काम किया था।
बीजेपी संगठन में रहा अहम योगदान:
अशीम घोष ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी और संघ की जड़ों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। वे पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में रहते हुए संगठन को दिशा दे रहे थे। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष समीप भट्टाचार्य ने उनके नाम की
सिफारिश की थी। समीप ने बताया कि जब घोष प्रदेश अध्यक्ष थे, तब वे उनके साथ महामंत्री के रूप में काम कर चुके हैं।
हरियाणा में राज्यपालों का इतिहास:
हरियाणा में अब तक सबसे लंबा कार्यकाल बीरेंद्र नारायण चक्रवर्ती का रहा है, जिन्होंने 15 सितंबर 1967 से 26 मार्च 1976 तक यानी 8 साल 6 महीने 11 दिन तक यह पद संभाला। वहीं सबसे छोटा कार्यकाल ओम प्रकाश वर्मा का रहा,
जो केवल 6 दिन (2 जुलाई 2004 से 7 जुलाई 2004) के लिए कार्यवाहक राज्यपाल रहे।
अन्य राज्यों में भी नियुक्तियां:
हरियाणा के साथ-साथ राष्ट्रपति ने गोवा और लद्दाख में भी नई नियुक्तियां की हैं। गोवा के राज्यपाल के रूप में पुष्पपति अशोक गजपति राजू की नियुक्ति हुई है, जबकि कविन्द्र गुप्ता को लद्दाख का नया उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है। इसके साथ ही ब्रिगेडियर डॉ. बी.डी. मिश्रा (सेवानिवृत्त) का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है, जो अब तक लद्दाख के
उपराज्यपाल पद पर कार्यरत थे।
नए राज्यपालों से नई उम्मीदें:
तीनों नई नियुक्तियों को बीजेपी संगठन के अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं को अहम जिम्मेदारी सौंपने के रूप में देखा जा रहा है। इससे न केवल संगठनात्मक मजबूती मिलेगी, बल्कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्रशासनिक तालमेल भी बेहतर होने की उम्मीद है।