
गाड़ियों और दोपहिया वाहनों पर नफरत की चुपचाप फैलती छाप
रायपुररानी में गाड़ियों और दोपहिया वाहनों पर जातिवादी, धार्मिक और सोशल सूचक शब्दों का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। ये शब्द अब केवल गाड़ियों की नंबर प्लेटों और बम्परों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि दोपहिया वाहनों के हैंडल, बैक और टंकी तक भी पहुँच चुके हैं। शुरुआत में इसे मामूली उल्लंघन समझा गया, लेकिन अब यह एक गंभीर सामाजिक खतरा बन चुका है। इन शब्दों के जरिए न सिर्फ मोटर व्हीकल के नियमों की अनदेखी हो रही है, बल्कि समाज में जातिवाद, धार्मिक भेदभाव, नफरत और सामाजिक असहमति भी फैल रही है। वाहन चालक अपनी गाड़ियों पर इन शब्दों से सड़क पर अराजकता और तनाव पैदा कर रहे हैं, जो समाज के सामूहिक सद्भाव के लिए खतरा बन चुका है।

ट्रैफिक पुलिस की चुप्पी क्या केवल नियमों का उल्लंघना है या कुछ और?
क्षेत्र में बढ़ते जातिवादी, धार्मिक और सोशल सूचक शब्दों के मामले पर नागरिकों ने ट्रैफिक पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि वाहन चेकिंग की कमी के कारण न सिर्फ ट्रैफिक नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, बल्कि जातिवादी और धार्मिक शब्दों के जरिए समाज में तनाव और नफरत भी फैल रही है। एक स्थानीय निवासी का कहना है कि यह केवल एक साधारण ट्रैफिक उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह समाज में अराजकता, भेदभाव और धार्मिक विद्वेष को बढ़ावा देने वाला गंभीर मुद्दा बन चुका है। पुलिस द्वारा इस पर कोई ठोस कदम न उठाया जाना इस समस्या को और विकराल बना सकता है। हालांकि, मोटर व्हीकल एक्ट के तहत यातायात नियमों का पालन करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है और गाड़ियों पर इस तरह के विवादित शब्दों को लिखना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज के लिए भी खतरा है। अगर पुलिस और प्रशासन इस पर सख्त कदम नहीं उठाते, तो यह मोटर व्हीकल के नियमों के उल्लंघन से कहीं अधिक गंभीर मामला बन सकता है।

जातिवादी, धार्मिक और सोशल ट्रेंड के खिलाफ सामाजिक संगठनों ने उठाई जरूरी कार्रवाई की मांग
सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों ने इस बढ़ते जातिवादी, धार्मिक और सोशल सूचक शब्दों के ट्रेंड पर कड़ी कार्रवाई की मांग उठाई है। उनका मानना है कि यह सिर्फ यातायात उल्लंघन नहीं, बल्कि हमारे समाज के मूल्यों पर हमला है। नाम ना बताने की शर्त पर एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि यह खतरनाक ट्रेंड समाज में भेदभाव, धार्मिक असहिष्णुता और नफरत को बढ़ावा दे रहा है और यदि इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो यह एक गंभीर सामाजिक संकट का कारण बन सकता है।

आखिर प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस कब इस गंभीर मुद्दे पर सख्त कदम उठाएंगे या फाइलों में सिमटेगा कानून?
अब यह समस्या केवल ट्रैफिक उल्लंघन से कहीं बढ़कर एक सामाजिक मुद्दा बन चुकी है। प्रशासन और पुलिस को इसे सिर्फ यातायात सुरक्षा के नजरिए से नहीं, बल्कि समाज के सामूहिकता और सद्भाव को बनाए रखने के तौर पर देखना चाहिए। अगर प्रशासन समय रहते इस पर कदम नहीं उठाता, तो यह न केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा होगा, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी प्रभावित करेगा। अब सवाल यह है कि प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस इस गंभीर मुद्दे पर कब और कितनी गंभीरता से कदम उठाएंगे? क्या वे इसे केवल एक यातायात उल्लंघन मानकर नजरअंदाज करेंगे या फिर इस बढ़ते हुए ट्रेंड को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएंगे? समय की बर्बादी इस समस्या को और बढ़ा सकती है। यदि इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया, तो यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन अपने कर्तव्यों से भाग रहा है या इस जटिल समस्या से निपटने के लिए तैयार नहीं है।
