Thursday, August 14, 2025

एक तस्वीर….. और ज़िंदगी बदल गई

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: यह सिर्फ एक संयोग नहीं था, बल्कि तक़दीर की बुनियाद थी जो 16 नवंबर 1986 को पूर्णमासी के दिन नाडा साहिब गुरुद्वारा साहिब में रखी गई। उसी दिन पहली बार हरप्रीत कौर बबला ने अपने भविष्य के जीवनसाथी दविंदर सिंह बबला और उनकी माता जी को देखा। उस मुलाकात में बिना बोले बहुत कुछ कहा गया। वे दोनों लगातार हरप्रीत की ओर देख रहे थे। हरप्रीत को हैरानी हुई कि ये कौन लोग हैं जो इतने ध्यान से देख रहे हैं। लेकिन कुछ ही समय में यह राज भी खुल गया। हरप्रीत कौर बबला ने बताया, बाद में पता चला कि मेरी फोटो शादी के लिए
उनके पास गई थी और उन्होंने मुझे उसी तस्वीर से पहचान लिया था। जब उन्होंने देखा कि मैं आर्मी की गाड़ी में बैठ रही हूं तो उन्हें यकीन हो गया कि मैं वही लडक़ी हूं, जिसकी फोटो उन्होंने देखी थी। दिनभर न्यूज के पॉलिटिकल एडिटर तरलोचन सिंह के सवालों के मेयर हरप्रीत कौर बबला ने दिए रोचक जवाब, जो हम इस लेख के माध्यम से अपने पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं।

हरप्रीत कहती हैं, एक दिन बबला जी ने मुझसे मेरी जन्म तारीख पूछी। जब मैंने बताया कि मेरा जन्मदिन 26 जनवरी है, तो वे मुस्कराए और बोले ‘मेरा भी जन्मदिन 26 जनवरी को ही आता है।’ उस दिन मैंने मन ही मन ठान लिया था कि मैं शादी इन्हीं से करूंगी। इस मुलाकात के बाद शादी के बंधन में बंध गए और तब से आज तक हर पूर्णमासी को नाडा साहिब में माथा टेकने जाने लगे। ये उनकी भक्ति भी थी और एक तरह से भावनात्मक जुड़ाव भी। धीरे-धीरे यह रिश्ता गहराता गया। हालांकि हरप्रीत को दविंदर सिंह बबला की कॉलेज के समय की शरारतों और उनकी राजनीति में सक्रियता के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी, लेकिन इतना जरूर पता था कि वे कॉलेज के प्रधान रह चुके हैं और छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे। हरप्रीत कहती हैं,  शादी के बाद बबला जी ने अपने स्वभाव में काफी बदलाव किया। पारिवारिक जि़म्मेदारियों में भी वे सहयोगी रहे, बच्चों की पढ़ाई, घरेलू खर्च, पारिवारिक जिम्मेदारियां हर मोर्चे पर उन्होंने नेतृत्व
किया। हरप्रीत कौर बबला ने न सिर्फ एक आदर्श गृहिणी के रूप में भूमिका निभाई बल्कि धीरे-धीरे सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी कदम रखा। वह बताती हैं, संयुक्त परिवार से राजनीति में आना कोई आसान फैसला नहीं था। बहुत सी मुश्किलें आती हैं, खासकर फैसले लेने में। लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। मैं सिर्फ काम करने में विश्वास रखती हूं और उसका परिणाम वाहेगुरू पर छोड़ देती हूं।

- Advertisement -

हरप्रीत कौर बबला चंडीगढ़ नगर निगम की मेयर बनीं। यह उपलब्धि उनके लिए गर्व की बात है, लेकिन वे इसे जिम्मेदारी के रूप में देखती हैं। उनका कहना है कि वह शहर के विकास के लिए दिन-रात काम कर रही हैं और हमेशा यही
कोशिश रहती है कि हर फैसला जनहित में हो। पहले के मुकाबले अब चंडीगढ़ को प्रशासन से ज्यादा फंड मिल रहा है। मैं इस बात का पूरा ध्यान रखती हूं कि निगम के सभी काउंसलरों को पूरा सम्मान मिले। जब भी कोई कार्यक्रम होता
है, मैं पहले ही निगम अधिकारियों से कह देती हूं कि सभी काउंसलरों को आमंत्रित किया जाए और उनके सम्मान में कोई कमी न रहे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को बराबरी का हक मिलना चाहिए, चाहे वे सत्तापक्ष से हों या विपक्ष से। उनके मुताबिक, एक अच्छे नेतृत्व की निशानी यही है , इसलिए  वह सभी को साथ लेकर चलती हैं। हरप्रीत कौर बबला की यह जीवन यात्रा एक प्रेरणादायक गाथा है—जहां एक साधारण सी मुलाकात से शुरू हुआ रिश्ता न केवल जीवन का आधार बना बल्कि समाज सेवा और जनहित की दिशा में एक मजबूत नेतृत्व की मिसाल भी।

उनकी कहानी यह बताती है कि अगर नीयत साफ हो, मेहनत सच्ची हो और विश्वास गहरा हो, तो कोई भी मुकाम मुश्किल नहीं होता। आज हरप्रीत कौर बबला न केवल एक राजनीतिक पद पर हैं, बल्कि वे एक मिसाल हैं एक पत्नी, मां, सामाजिक कार्यकर्ता और अब शहर की मेयर के रूप में। उनका यह सफर चंडीगढ़ की महिलाओं के लिए भी एक संदेश है कि वे भी आगे बढ़ सकती हैं, निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं और शहर की दिशा और दशा बदल सकती हैं।

E-Paper
RELATED ARTICLES

Most Popular




More forecasts: oneweather.org