भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: रीतु भाटिया ने बजवा डेवलपर्स लिमिटेड के सनी एन्क्लेव में एक 200 गज का रिहायशी प्लॉट नंबर 709 के लिए 14 साल पहले 29 लाख 20 हजार 907 रूपए दिए गए थे, उसका न तो आज तक कब्जा मिला और न ही पैसे लौटाए गए। जिला उपभोक्ता आयोग, मोहाली ने बजवा डेवलपर्स लिमिटेड को 29.20 लाख की राशि ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही, 50 हजार रुपये मानसिक पीड़ा और मुकदमे के खर्च के तौर पर अतिरिक्त देने को कहा गया है। बता दें कि रीतु भाटिया और उनकी मां चंद्र रानी क्वात्रा ने 24 दिसंबर 2010 को मोहाली के सेक्टर 124, सनी एन्क्लेव में एक 200 गज का रिहायशी प्लॉट नंबर 709 बुक किया था। इस प्लॉट की कुल कीमत 27 लाख 40 हजार तय हुई थी, लेकिन अलग-अलग तारीखों में उन्होंने कुल 29 लाख 20 हजार 907 रुपये जमा करवा दिए।
इनमें से 5,000 की बुकिंग राशि, 7.5 लाख की अर्नेस्ट मनी, और बाकी किस्तों में अलग-अलग तारीखों पर भुगतान किया गया। अंतिम भुगतान और रजिस्ट्री चार्ज तक 2019 में कर दिए गए। रीतु की मां की मृत्यु 5 जुलाई 2018 को हो गई। इसके बाद उनकी बहन कमाक्षी भाटिया ने एक शपथपत्र देकर अपनी हिस्सेदारी रीतु को सौंप दी। 18 अक्टूबर 2019 को प्लॉट की रजिस्ट्री रीतु भाटिया के नाम पर हो गई, लेकिन इसके बावजूद उन्हें जमीन का कब्जा आज तक नहीं मिला।
छिपाई गई सच्चाई:
बजवा डेवलपर्स ने यह महत्वपूर्ण जानकारी रीतु भाटिया से छिपा ली कि उसी प्लॉट वाली ज़मीन पर पहले से एक सिविल केस चल रहा था। इस केस का फैसला 11 फरवरी 2020 को हुआ, जिसमें अदालत ने यह कहा कि बजवा डेवलपर्स उस ज़मीन के मालिक नहीं हैं और उन्हें किसी को प्लॉट बेचने या ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं है। इसका मतलब यह है कि जब कंपनी ने रीतु से पैसे लेकर प्लॉट की रजिस्ट्री की, तब उनके पास कानूनी अधिकार ही नहीं था उस प्लॉट को
बेचने का।
कोशिशें बेकार गईं, फिर उठाया कानूनी रास्ता:
रीतु ने कई बार कंपनी से संपर्क किया या तो प्लॉट का कब्ज़ा देने या फिर पैसे लौटाने के लिए। लेकिन हर बार उन्हें टाल दिया गया। थक-हार कर उन्होंने 12 मई 2023 को उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करवाई।
बिल्डर की दलीलें खारिज:
बजवा डेवलपर्स की ओर से जवाब दिया गया कि यह मामला उपभोक्ता आयोग में नहीं बल्कि सिविल कोर्ट में चलना चाहिए क्योंकि प्लॉट व्यवसायिक उद्देश्य से लिया गया था। लेकिन अदालत ने साफ किया कि यह रिहायशी प्लॉट था, और
मामला उपभोक्ता आयोग में पूरी तरह वैध है। इसके अलावा बिल्डर ने कहा कि शिकायत समय सीमा से बाहर है क्योंकि 10 साल तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस पर अदालत ने कहा कि जब तक कब्जा या पैसा नहीं मिला, तब तक उपभोक्ता का अधिकार बना रहता है। इसलिए यह शिकायत सीमा अवधि के भीतर है।
न्याय मिला, कंज़्यूमर कोर्ट का सख्त फैसला:
आयोग के अध्यक्ष एस.के.अग्रवाल और सदस्य परमजीत कौर ने मामले की सुनवाई के बाद निर्णय सुनाया। अदालत ने कहा कि बिल्डर ने ग्राहक के साथ धोखा और अनुचित व्यापारिक व्यवहार किया है। रीतु भाटिया को 29 लाख 20 हजार 907 रुपये की राशि, 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ, जमा तारीखों से लेकर अदायगी तक, दो महीने के भीतर लौटानी होगी। यदि तय समय में पैसा नहीं लौटाया गया तो ब्याज 12 प्रतिशत प्रति वर्ष हो जाएगा। साथ ही 50 हजार रुपये मानसिक पीड़ा और मुकदमे के खर्च के रूप में अलग से देने होंगे।
न्याय की जीत, लेकिन चेतावनी भी:
यह केस उन हज़ारों ग्राहकों के लिए मिसाल है जो बिल्डरों की लापरवाही और धोखाधड़ी के शिकार होते हैं। साथ ही यह डेवलपर्स के लिए भी एक चेतावनी है कि ग्राहकों के साथ पारदर्शिता बरतें, नहीं तो उन्हें क़ानूनी नतीजे भुगतने होंगे।