Thursday, August 14, 2025

निगम से मांगा 5 साल का रिकॉर्ड, पीडि़त हरदीप सिंह के दर्ज हुए बयान

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: नगर निगम के कम्युनिटी सेंटरों में हुए कथित बुकिंग घोटाले की जांच विजिलेंस विभाग ने शुरू कर दी है। यह मामला कोई मामूली गड़बड़ी नहीं, बल्कि करोड़ों रुपए की वित्तीय अनियमितता से जुड़ा है, जिसमें
‘फ्री बुकिंग’ कर आम लोगों से भारी रक़म वसूली गई। प्रारंभिक जांच में विजिलेंस विभाग ने नगर निगम से पिछले पाँच वर्षों का पूरा रिकॉर्ड मांगा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किन-किन लोगों के नाम पर कम्युनिटी सेंटर फ्री में बुक किए गए और क्या वे वास्तव में इस सुविधा के पात्र थे या नहीं।

इस घोटाले का पहला बड़ा सुराग तब मिला जब गांव बटरेला (सेक्टर 41) के निवासी हरदीप सिंह से 55,000 रुपये लिए गए, जबकि उनकी बुकिंग स्लिप में ‘अमाउंट  ज़ीरो’ दर्शाया गया था। शक होने पर जब हरदीप सिंह ने जांच की, तो पता चला कि उनसे मोटी रकम लेकर भी फ्री बुकिंग दिखाई गई। हरदीप सरकारी कर्मचारी हैं और फ्री बुकिंग के पात्र नहीं थे।
अब सवाल उठता है कि यह फ्री बुकिंग किसने की और कैसे हुई? वह 55,000 रुपये आखिर किसकी जेब में गए थे?

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पैसे लौटाए जाने के बाद बयान बदला:
सूत्रों के अनुसार, जब यह मामला उजागर हुआ तो घोटालेबाज सक्रिय हो गए और हरदीप से संपर्क कर लिए गए पैसे वापिस लौटा दिए। इसके बाद हरदीप ने अपने बयान में बदलाव करते हुए कहा कि यह राशि बुकिंग ब्रांच के कर्मचारियों को नहीं, बल्कि किसी अन्य जान-पहचान वाले को दी गई थी। निगम ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि वह व्यक्ति कौन था। इसके अतिरिक्त, जिस वार्ड काउंसलर के नाम पर रिकमेंडेशन फार्म में साइन और स्टांप थे, उस पार्षद ने स्पष्ट किया था कि न तो वे हरदीप को जानते हैं और न ही उन्होंने किसी फार्म पर हस्ताक्षर किए हैं। उनके फर्जी साइन और स्टांप का इस्तेमाल किया गया था। इसके बावजूद, नगर निगम के उच्च अधिकारियों ने पार्षद की स्टेटमेंट को नजऱ अंदाज़ कर केवल पीडि़त के बयान को ही आधार मानकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

करोड़ों का घोटाला, फिर भी कोई पुलिस कंप्लेंट नहीं:
कुछ समय पहले जब चंडीगढ़ स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (सीटीयू) में टैग घोटाला सामने आया था, तो अधिकारियों ने तुरंत एफआईआर दर्ज करवाई थी। लेकिन इस मामले में नगर निगम के अधिकारियों ने न तो पुलिस में कोई शिकायत दी और न ही मामले को गंभीरता से लिया। यह दर्शाता है कि वे इस घोटाले को दबाने की कोशिश में जुटे थे।

कैसे होता था फर्जी बुकिंग का खेल?
सूत्रों के मुताबिक, फ्री बुकिंग नियमों का गलत फायदा उठाया गया। नियमों के अनुसार, गरीब या ज़रूरतमंद वर्ग को कुछ शर्तों पर मुफ्त बुकिंग की सुविधा है। लेकिन दलालों और अंदरूनी कर्मचारियों की मिलीभगत से इन नियमों का उल्लंघन कर बुकिंग को फर्जी तौर पर फ्री दिखाया गया और लोगों से मोटी रकम वसूली गई। चौंकाने वाली बात यह है कि कई मामलों में निगम पार्षदों की नकली स्टैंप और हस्ताक्षरों का भी इस्तेमाल किया गया, ताकि बुकिंग वैध और ‘सिफारिश पर आधारित’ दिखे।

पारदर्शी और डिजिटल किया जाना बेहद ज़रूरी:
नगर प्रशासन के एक पूर्व पार्षद का कहना है कि कम्युनिटी सेंटर की बुकिंग प्रक्रिया को पारदर्शी और डिजिटल किया जाना बेहद ज़रूरी है। अगर यह घोटाला साबित होता है, तो यह केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि सरकारी
व्यवस्था में गंभीर खामी का प्रतीक होगा।

जनता को न्याय की उम्मीद:
घोटाले के सामने आने के बाद शहर में चर्चाओं का दौर तेज़ है। सूत्रों के अनुसार, कई अन्य पीडि़त भी सामने आने की तैयारी में हैं, जिन्होंने सेंटर बुकिंग के लिए पैसे दिए लेकिन रिकॉर्ड में उन्हें फ्री बुकिंग दिखाया गया। विजिलेंस की जांच से लोगों में उम्मीद जगी है कि अब इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाएंगे। विभाग  ने निगम से रिकॉर्ड मंगवाया है और शिकायतकर्ता के बयान आज दर्ज किए जा चुके हैं। आगे की जांच में कई नाम सामने आने की संभावना है।

दोषी को बख्शा नहीं जाएगा:
नगर निगम के कम्युनिटी सेंटरों में फ्री बुकिंग के नाम पर हुए इस कथित घोटाले को लेकर शहर की जनता में भारी रोष है। विजिलेंस की सक्रियता ने यह संकेत दिया है कि यदि कोई दोषी पाया गया तो उसे बख्शा नहीं जाएगा। अब शहरवासियों की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह जांच निष्पक्ष और प्रभावशाली होगी, या यह मामला भी बाकी घोटालों की तरह फाइलों में दब कर रह जाएगा।

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