Thursday, August 14, 2025

जीआरडीआरसी चेयरमैन और सदस्यों को वेतन यूटी प्रशासन के बजट से मिले, न कि स्ट्रीट वेंडर के पैसे से: गिरी

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: फुटपाथ विक्रेताओं के अधिकारों की सुरक्षा और न्याय की मांग को लेकर टाउन वेंडिंग कमेटी के सदस्य मुकेश गिरी ने एक अहम कदम उठाया है। उन्होंने चंडीगढ़ प्रशासन के मुख्य सचिव को एक विस्तृत पत्र लिखकर कई गंभीर प्रशासनिक और कानूनी खामियों की ओर ध्यान दिलाया है। यह पत्र स्ट्रीट वेंडर्स (जीविका की सुरक्षा और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) अधिनियम, 2014  के तहत बनी शिकायत निवारण एवं विवाद समाधान समिति (जीआरडीआरसी) की कार्यप्रणाली को लेकर है। जीआरडीआरसी वह समिति है जिसे फुटपाथ विक्रेताओं की शिकायतों को सुनने और सुलझाने के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि छोटे दुकानदारों, रेहड़ी वालों और स्ट्रीट वेंडरों को न्याय मिल सके। लेकिन मुकेश गिरी का आरोप है कि यह समिति आज अपनी असली भूमिका निभाने में असमर्थ है, और इसके पीछे प्रशासनिक गड़बडिय़ां हैं।

मुख्य समस्याएं जिनकी ओर ध्यान दिलाया गया:
मुकेश गिरी ने बताया कि जीआरडीआरसी के सारे फैसले और काम नगर निगम चंडीगढ़ को ट्रांसफर किए जा रहे हैं, जबकि नियमों के अनुसार यह सब काम चंडीगढ़ प्रशासन के अधीन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से नियमों और कानून के खिलाफ है।

- Advertisement -

स्टाफ की भारी कमी:
जीआरडीआरसी में सिर्फ 3 लोग काम कर रहे हैं, जबकि हजारों मामले पेंडिंग हैं। इतनी कम संख्या में स्टाफ होने से शिकायतों का समय पर निपटारा नहीं हो पा रहा है। जबकि नियम यह कहता है कि शिकायत आने के 60 दिन के भीतर
उसका समाधान किया जाना चाहिए।

पैसे का स्रोत भी बना विवाद:
जीआरडीआरसी के चेयरमैन और सदस्यों को वेतन नगर निगम चंडीगढ़ द्वारा दिया जा रहा है और वह पैसा स्ट्रीट वेंडरों से वसूले गए जुर्मानों से आ रहा है। मुकेश गिरी का कहना है कि यह सरासर अनुचित है क्योंकि ज्यादातर केस खुद नगर निगम के खिलाफ ही होते हैं। ऐसे में समिति की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।

ऑफिस की लोकेशन से पैदा होता है दबाव:
जीआरडीआरसी का दफ्तर इस समय नगर निगम की बिल्डिंग में ही है, जबकि वह खुद नगर निगम के खिलाफ केसों पर सुनवाई करता है। इससे न सिर्फ जनता का विश्वास कम होता है, बल्कि समिति पर प्रशासनिक दबाव भी बन सकता है।

मासिक मीटिंग्स न होना:
नियमों के अनुसार समिति को हर सप्ताह मीटिंग करनी चाहिए ताकि केसों का जल्दी निपटारा हो सके। लेकिन अभी मीटिंग महीनों बाद होती है, जिससे केसों की संख्या बढ़ती जा रही है और फुटपाथ विक्रेताओं को लंबे समय तक परेशान
रहना पड़ता है।

मुकेश गिरी ने क्या मांगा?
– जीआरडीआरसी का पूरा नियंत्रण सिर्फ और सिर्फ चंडीगढ़ प्रशासन के पास हो, नगर निगम के पास नहीं।
– समिति में कम से कम 8 लोगों का स्टाफ हो, जिसमें एक रेगुलर रीडर की पोस्ट भी शामिल हो।
– चेयरमैन और सदस्यों को वेतन यूटी प्रशासन के बजट से मिले, न कि स्ट्रीट वेंडर के पैसे से।
– जीआरडीआरसी का दफ्तर नगर निगम से हटाकर चंडीगढ़ प्रशासन की बिल्डिंग में लगाया जाए ताकि स्वतंत्रता बनी रहे।
– सप्ताह में एक बार नियमित मीटिंग हो ताकि केसों की सुनवाई 60 दिन के भीतर हो सके।
– भविष्य में नियमों के उल्लंघन को रोकने के लिए एक निगरानी प्रणाली भी बनाई जाए।

क्यों ज़रूरी है यह सुधार?
मुकेश गिरी ने कहा कि यह सिर्फ प्रशासनिक मामला नहीं है, यह फुटपाथ पर रोज़ी-रोटी कमाने वाले हजारों लोगों के जीवन और सम्मान का सवाल है। स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट 2014 को इसी मकसद से लाया गया था कि छोटे दुकानदारों को सुरक्षा मिले और उन्हें प्रशासनिक अन्याय से बचाया जा सके। उन्होंने यह भी चेताया कि यदि समय पर सुधार नहीं हुए, तो फुटपाथ विक्रेताओं का प्रशासन से भरोसा उठ जाएगा और उनका संवैधानिक अधिकार भी खतरे में पड़ सकता है।

E-Paper
RELATED ARTICLES

Most Popular




More forecasts: oneweather.org