Thursday, August 14, 2025

“जी-हजूरी” का समय गया, राजनीति में ‘जुगाड़’ नहीं चलता: मल्होत्रा

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: राजनीति की दुनिया में अक्सर यह कहा जाता है कि सफलता उन्हीं के हिस्से आती है जो जी-हजूरी में माहिर हों, जो ऊपर वालों की हाँ में हाँ मिलाकर चलें और जो हर आदेश को बिना सवाल उठाए स्वीकार कर लें। लेकिन चंडीगढ़ भाजपा अध्यक्ष जतिंदर सिंह मल्हौत्रा इस आम धारणा से अलग छवि के नेता हैं। उनका व्यक्तित्व उनके स्पष्ट, बेबाक और दृढ़ विचारों की वजह से अलग पहचान रखता है। न वो दिखावा करते हैं, न ही राजनीतिक औपचारिकताओं में ज्यादा यकीन रखते हैं। यही वजह है कि वो चंडीगढ़ बीजेपी की राजनीति में एक ऐसे चेहरे के तौर पर उभरे हैं जो न केवल संगठन को जोडऩे की क्षमता रखते हैं बल्कि जमीनी हकीकत को भी खुलकर सामने रखते हैं।चंडीगढ़ दिनभर के पॉलिटिकल एडिटर तरलोचन सिंह के साथ खास इंटरव्यू में चंडीगढ़ भाजपा अध्यक्ष जतिंदर मल्होत्रा ने कहा, “जो लोग बीजेपी को ‘हिंदुओं की पार्टी’ या ‘लालाओं की पार्टी’ कहते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि आज पंजाब में बीजेपी के 65 प्रतिशत मंडल अध्यक्ष सिख हैं।”

राजनीति में ‘जुगाड़’ नहीं, निष्ठा और परिश्रम मायने रखते हैं:

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जब मल्हौत्रा से यह पूछा गया कि चंडीगढ़ में भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में कई वरिष्ठ नामों के रहते हुए उन्हें कैसे मौका मिला, तो उन्होंने साफ-साफ कहा, अगर कोई सोचता है कि जुगाड़ लगाकर कुछ बन सकता है, तो यह उसकी सबसे बड़ी गलती है। जब मेरा नाम घोषित हुआ, मुझे एक घंटे पहले तक इसकी जानकारी नहीं थी। उनके इस जवाब से स्पष्ट होता है कि उन्होंने संगठन में बिना दिखावे के, लगातार मेहनत और ईमानदारी से कार्य किया, जिसका मूल्यांकन पार्टी नेतृत्व ने किया।

2011 से राजनीति में पार्षद बनने से शुरू हुआ सफर:

मल्हौत्रा का राजनीतिक सफर 2011 में शुरू हुआ, जब उन्हें नगर निगम चुनाव लडऩे का टिकट मिला। उस दौर को वह अपनी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट मानते हैं। मैंने राजनीति में स्वभाव नहीं, सेवा को महत्व दिया। जो काम मेरे जि़म्मे आया, उसे पूरी निष्ठा से निभाया। इसी सोच के साथ आज भी काम कर रहा हूं। उनका मानना है कि राजनीति में केवल व्यक्तित्व नहीं, कार्य और समर्पण ही व्यक्ति को आगे ले जाते हैं।

बीजेपी किसी धर्म की पार्टी नहीं, गरीबों की पार्टी है:

जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि कुछ लोग बीजेपी को ‘हिंदुओं की पार्टी’ या ‘लालाओं की पार्टी’ कहकर संबोधित करते हैं, तो उन्होंने तर्क के साथ जवाब दिया, पंजाब में आज 65 प्रतिशत मंडल प्रधान सिख हैं। जो यह कहता है कि बीजेपी सिर्फ एक समुदाय की पार्टी है, वह या तो गुमराह है या गुमराह करना चाहता है। बीजेपी आज उस गरीब वर्ग की पार्टी बन चुकी है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है। उनके इस बयान से स्पष्ट है कि वह पार्टी की छवि को व्यापक और समावेशी बनाना चाहते हैं।

सांसद चुनाव हारना एक अनुभव था, लेकिन संगठन पर भरोसा बना रहा:

चंडीगढ़ में हाल ही में हुए सांसद चुनाव में मल्हौत्रा बीजेपी के उम्मीदवार संजय टंडन को चुनाव जीताने में असफल रहे थे, लेकिन उसके बाद भी उन्हें दोबारा संगठन ने अध्यक्ष पद के लिए चुना। इस पर उनका कहना था, राजनीति में ओवर कॉन्फिडेंस नहीं होना चाहिए। हार-जीत आती-जाती है, लेकिन संगठन किसने कितना काम किया, यह जानता है। पार्टी हाईकमान रिपोर्ट के आधार पर फैसला करता है। उनकी सोच यह दर्शाती है कि वह हार को आत्म-मंथन के रूप में लेते हैं, न कि झुंझलाहट के रूप में।

सार्वजनिक सेवा कहां हो रही है, उससे ज्यादा जरूरी है कि हो रही है:

पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अरुण सूद द्वारा पार्टी ऑफिस की बजाय अपने घर पर लोगों की समस्याएं सुनने के मामले में जब उनसे राय मांगी गई, तो मल्हौत्रा ने संतुलित उत्तर दिया, अगर कोई नेता जनता की सेवा कर रहा है तो इसमें एतराज क्यों होना चाहिए? पार्टी का ऑफिस सेक्टर-33 स्थित ‘कमलम’ है, और वहां सब कुछ व्यवस्थित है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता एकजुट हैं और सब मिलकर कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं।

कांग्रेस और आप ने वोटर्स को बहकाया, अब जिम्मेदारी उनकी है:

मनीष तिवारी की जीत और केंद्र से फंड में आ रही देरी के सवाल पर मल्हौत्रा ने दो टूक कहा, चंडीगढ़ का विकास जारी है। लेकिन कांग्रेस और आप ने झूठे वादे कर वोटर्स को गुमराह किया। हर महीने पैसे देने जैसी बातों से लोगों को लालच देकर वोट लिया गया। अब शहर का प्रतिनिधित्व मनीष तिवारी कर रहे हैं और उनके पास केंद्र से फंड लाने की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि पांच साल बाद जनता खुद तय करेगी कि किसने कितना
काम किया।

एकजुटता पर भरोसा, आलोचना से नहीं घबराते मल्हौत्रा:

मल्हौत्रा का मानना है कि एक संगठन तब तक मजबूत रहता है जब तक उसमें मतभेदों को संवाद से सुलझाया जाए। राजनीति में सभी के विचार अलग हो सकते हैं, लेकिन जब उद्देश्य जनता की सेवा हो तो मतभेद मायने नहीं रखते। उनकी यह सोच उन्हें संगठन के भीतर स्वीकार्य बनाती है, साथ ही युवाओं में भी एक सकारात्मक छवि बनाती है।

निष्ठा और परिश्रम मायने रखते हैं:

जब मल्हौत्रा से यह पूछा गया कि चंडीगढ़ में भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में कई वरिष्ठ नामों के रहते हुए उन्हें कैसे मौका मिला, तो उन्होंने साफ-साफ कहा, अगर कोई सोचता है कि जुगाड़ लगाकर कुछ बन सकता है, तो यह
उसकी सबसे बड़ी गलती है। जब मेरा नाम घोषित हुआ, मुझे एक घंटे पहले तक इसकी जानकारी नहीं थी। उनके इस जवाब से स्पष्ट होता है कि उन्होंने संगठन में बिना दिखावे के, लगातार मेहनत और ईमानदारी से कार्य किया, जिसका मूल्यांकन पार्टी नेतृत्व ने किया।

2011 से राजनीति में पार्षद बनने से शुरू हुआ सफर:

मल्हौत्रा का राजनीतिक सफर 2011 में शुरू हुआ, जब उन्हें नगर निगम चुनाव लडऩे का टिकट मिला। उस दौर को वह अपनी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट मानते हैं। मैंने राजनीति में स्वभाव नहीं, सेवा को महत्व दिया। जो काम मेरे जि़म्मे आया, उसे पूरी निष्ठा से निभाया। इसी सोच के साथ आज भी काम कर रहा हूं। उनका मानना है कि राजनीति में केवल व्यक्तित्व नहीं, कार्य और समर्पण ही व्यक्ति को आगे ले जाते हैं।

बीजेपी किसी धर्म की पार्टी नहीं, गरीबों की पार्टी है:

जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि कुछ लोग बीजेपी को ‘हिंदुओं की पार्टी’ या ‘लालाओं की पार्टी’ कहकर संबोधित करते हैं, तो उन्होंने तर्क के साथ जवाब दिया, पंजाब में आज 65 प्रतिशत मंडल प्रधान सिख हैं। जो यह कहता है कि बीजेपी सिर्फ एक समुदाय की पार्टी है, वह या तो गुमराह है या गुमराह करना चाहता है। बीजेपी आज उस गरीब वर्ग की पार्टी बन चुकी है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है। उनके इस बयान से स्पष्ट है कि वह पार्टी की छवि को व्यापक और समावेशी बनाना चाहते हैं।

सांसद चुनाव हारना एक अनुभव था, लेकिन संगठन पर भरोसा बना रहा:

चंडीगढ़ में हाल ही में हुए सांसद चुनाव में मल्हौत्रा बीजेपी के उम्मीदवार संजय टंडन को चुनाव जीताने में असफल रहे थे, लेकिन उसके बाद भी उन्हें दोबारा संगठन ने अध्यक्ष पद के लिए चुना। इस पर उनका कहना था, राजनीति में ओवर कॉन्फिडेंस नहीं होना चाहिए। हार-जीत आती-जाती है, लेकिन संगठन किसने कितना काम किया, यह जानता है। पार्टी हाईकमान रिपोर्ट के आधार पर फैसला करता है। उनकी सोच यह दर्शाती है कि वह हार को आत्म-मंथन के रूप में लेते हैं, न कि झुंझलाहट के रूप में।

सार्वजनिक सेवा कहां हो रही है, उससे ज्यादा जरूरी है कि हो रही है:

पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अरुण सूद द्वारा पार्टी ऑफिस की बजाय अपने घर पर लोगों की समस्याएं सुनने के मामले में जब उनसे राय मांगी गई, तो मल्हौत्रा ने संतुलित उत्तर दिया, अगर कोई नेता जनता की सेवा कर रहा है तो इसमें एतराज क्यों होना चाहिए? पार्टी का ऑफिस सेक्टर-33 स्थित ‘कमलम’ है, और वहां सब कुछ व्यवस्थित है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता एकजुट हैं और सब मिलकर कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं।

कांग्रेस और आप ने वोटर्स को बहकाया, अब जिम्मेदारी उनकी है:

मनीष तिवारी की जीत और केंद्र से फंड में आ रही देरी के सवाल पर मल्हौत्रा ने दो टूक कहा, चंडीगढ़ का विकास जारी है। लेकिन कांग्रेस और आप ने झूठे वादे कर वोटर्स को गुमराह किया। हर महीने पैसे देने जैसी बातों से लोगों को लालच देकर वोट लिया गया। अब शहर का प्रतिनिधित्व मनीष तिवारी कर रहे हैं और उनके पास केंद्र से फंड लाने की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी कहा कि पांच साल बाद जनता खुद तय करेगी कि किसने कितना काम किया।

एकजुटता पर भरोसा, आलोचना से नहीं घबराते मल्हौत्रा:

मल्हौत्रा का मानना है कि एक संगठन तब तक मजबूत रहता है जब तक उसमें मतभेदों को संवाद से सुलझाया जाए। राजनीति में सभी के विचार अलग हो सकते हैं, लेकिन जब उद्देश्य जनता की सेवा हो तो मतभेद मायने नहीं रखते। उनकी यह सोच उन्हें संगठन के भीतर स्वीकार्य बनाती है, साथ ही युवाओं में भी एक सकारात्मक छवि बनाती है।

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