भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: अगर आप बनूड़ के रॉयल सिटी प्रोजेक्ट में अपना आशियाना बसाकर रह रहे हैं, तो जरा अपने मकानों की रजिस्ट्रियों की ठीक से जांच करवा लें, हो सकता है कि ये रजिस्ट्रियां तो असली हो, लेकिन जिस जीपीए के आधार पर आपकी रजिस्ट्रियां हुई है, वह फर्जी निकले। जीं हां, रॉयल सिटी प्रोजेक्ट की 11.80 एकड़ जमीन के संबंध में फर्जी जीपीए की नई शिकायत पंजाब विजिलेंस विभाग में दी गई है,जिसकी जांच हो रही है। अगर आपका आशियाना इन्हीं 11.80एकड़ जमीन के बीच हो,तो आपकी रजिस्ट्री कैंसिल भी हो सकती है। दरअसल चंडीगढ़ रॉयल सिटी प्राइवेट लिमिटेड के दो तत्कालीन निदेशकों नीरज कंसल और मनीष सिंगला पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) का इस्तेमाल कर 11.80 एकड़ ज़मीन को बेच दी। जिसकी मार्केट वेल्यू लगभग 50 करोड़ रुपए से भी ऊपर है।
इस संबंध में शिकायतकर्ता ने पंजाब विजिलेंस ब्यूरो को एक लिखित शिकायत
सौंपी है। शिकायत में कहा गया है कि यह ज़मीन दरअसल पीएम बिल्डर्स नामक फर्म की थी। इस फर्म के मालिकों का आरोप है कि नीरज कांसल ने खुद को इस फर्म का पार्टनर दर्शाते हुए फर्जी जीपीए नंबर 327, दिनांक 23 जनवरी 2013 के माध्यम से गांव कराला (बनुड़) की यह जमीन रजिस्ट्री करवा दी, जबकि उसका इस फर्म से कोई कानूनी संबंध नहीं था। इसमें दिखाया गया कि फर्म के मालिक नरेश गर्ग,प्यारा लाल गर्ग ने और नीरज कांसल ने अपनी सहमति से जीपीए मनीष सिंगला को दे दी है। जबकि इस रजिस्ट्रर जनरल पॉवर ऑफ अर्टानी में न प्यारा लाल के साइन है न ही नरेश गर्ग के। तहसीलदार ने भी कथित मिलीभगत से बिना मालिको के हस्ताक्षरों के जीपीए रजिस्टर कर दी। ऐसा भी नहीं कि किसी दूसरे को इसमें खड़ा कर मालिक दिखाया हो,असल में मालिकों के हस्ताक्षरों की जगह ही खाली है। यानि बिना मालिक आए जीपीए को रजिस्टर कर लिया गया। मामला सामने आने पर खुद डीसी ऑफिस,तहसील आफिस भी हैरान है कि इतनी बड़ी लापरवाही,या मिलीभगत कैसे हो सकती है। जांच विजिलेंस विभाग कर रही है और मामले में जल्द बड़े खुलासे हो सकते है। सरकारी अफसरों की मिलीभगत सामने आ सकती है।
शिकायत के अनुसार यह पूरा फर्जीवाड़ा साल 2013 से शुरू हुआ। आरोप के
मुताबिक नीरज कांसल ने एक जीपीए तैयार करवाकर खुद को पीएम बिल्डर्स का पार्टनर बताया,जबकि वह पीएम बिल्डर्स में न पार्टनर,न मालिक और न ही
वर्कर था,और उक्त ज़मीन की जीपीए मनीष सिंगला के नाम रजिस्टर करवा ली। चाहे नीरज कांसल ने खुद को मालिक भी बताया हो,फिर भी बाकि दो मालिक की हाजिरी और हस्ताक्षर जरूरी थे। जो लिए ही नहीं गए। इस संगीन फैक्ट पर तहसीलदार ने अपनी आंखे बंद रखी और उसकी मेहरबानी से नीचे यह सब घपला हो गया। इतना ही नहीं अब इस फर्जी 11.80 एकड़ जमीन कीजीपीए पर आम लोगों को अलग अलग प्लॉट की रजिस्ट्रियां करवा दी गई। यानि सिर्फ शिकायतकर्ता से ही नहीं,इन आम लोगों के साथ भी फर्जीवाड़ा हुआ।
सरकारी अफसरों की भूमिका संदिग्ध:
शिकायत में राजस्व विभाग और रजिस्ट्रेशन कार्यालय के कुछ कर्मचारियों पर
मिलीभगत या लापरवाही के आरोप भी लगाए गए हैं। शिकायतकर्ता ने कहा कि
दस्तावेज़ों की उचित जांच किए बिना ही रजिस्ट्री कर दी गई। अधिकारियों ने
यह भी नहीं परखा कि नीरज कांसल को जमीन बेचने का कोई वैध अधिकार है या नहीं।
कुछ दिन पहले ही नीरज कांसल पर दर्ज हुआ है करोड़ों की धोखाधड़ी का केस दर्ज…
बता दें कि कुछ दिन पहले ही नीरज कांसल,उसके भाई प्रवीण कांसल उर्फ रॉकी
और उनकी पत्नी पर पंजाब विजिलेंस विभाग ने मुल्लापुर की जमीन को फर्जी
कागजातों पर अपने नाम करवाने का केस दर्ज किया था। जिसमें अभी इनकी
गिरफ्तारी नहीं हुई है और विजिलेंस मामले की जांच कर रही है। अब उसी तरह
के आरोप दोबारा लगे हैं।
क्या मांगी गई कार्रवाई?
शिकायतकर्ता ने विजिलेंस ब्यूरो से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच
हो और दोषी निदेशकों व शामिल सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कानूनी
कार्रवाई की जाए। यह मामला पंजाब में चल रहे भू-माफिया और अफसरों की
मिलीभगत के नए उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। अब यह देखना अहम होगा कि विजिलेंस जांच में क्या सामने आता है।
सरकारी अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध:
इस घोटाले की तह में सरकारी तंत्र की मिलीभगत की आशंका भी जताई गई है। शिकायतकर्ता ने राजस्व विभाग के अधिकारियों, रजिस्ट्रेशन ऑफिस के
कर्मचारियों और अन्य जिम्मेदार अफसरों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना दस्तावेज़ों की सही जांच किए हुए रजिस्ट्री करना भारी लापरवाही
या फिर जानबूझकर की गई अनदेखी थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि संबंधित अफसरों ने यह पुष्टि तक नहीं की कि नीरज कंसल को जमीन बेचने का कोई वैध अधिकार है या नहीं। शिकायत में यह भी बताया गया कि दस्तावेजों की जांच के दौरान कई आपत्तियों को भी जानबूझकर नजरअंदाज किया गया।
रियल एस्टेट सेक्टर में सनसनी,बनूड़ प्रोजेक्ट की 11.80 एकड़ जमीन विवादों में,122 सेक्टर के प्रोजेक्ट के इवेस्टरों पर भी संकट के बादल…
इस घोटाले के सामने आने से चंडीगढ़-मोहाली रियल एस्टेट सेक्टर में सनसनी
फैल गई है। इससे न केवल लोगों के बीच डर का माहौल है, बल्कि यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या आज के समय में कानूनी दस्तावेज़ और सरकारी सिस्टम भरोसे के काबिल रह गए हैं? एक तरफ जहां इस बनूड के रॉयल सिटी प्रोजेक्ट में रह रहे लोग सकते में पड़ सकते हैं,वहीं सेक्टर 122 में प्राइवेट
बिल्डरों ने जो लोगों को आशियाने और कर्मिशयल प्रोजेक्ट के सपने दिखाए
थे। वह भी गलत साबित हो सकते हैं,चूंकि जिन बिल्डर्स के पास अब तक सीएलयू और रेरा परमिशन नहीं है। आगे इस सेक्टर को गमाडा एक्वायर करने जा रहा है, तो दोबारा अब सीएलयू परमिशन मिलने की उम्मीद लगभग न के बराबर है। ऐसे में इस सेक्टर में बिल्डरों के झांसे में आकर जिन लोगों का पैसा इंवेस्ट हुआ है, वे असमंजस में है।
पीयूष कांसल(आरोपी नीरज कांसल का भतीजा और कंपनी की तरफ से स्पोक्सपर्सन): जब हाथी चलता है, तो कुत्ते भौंकते हैं।” इस प्रकार की शब्दावली के लिए मैं क्षमा चाहता हूँ, लेकिन आजकल शहर में कई ऐसे ब्लैकमेलर लोग सक्रिय हैं जो सिर्फ मौके की तलाश में रहते हैं कि कोई छोटा-मोटा विवाद हो और वे किसी प्रतिष्ठित और वेल-सेटल्ड व्यक्ति को परेशान करने का अवसर पा जाएं। हमारे साथ भी ऐसा हो रहा है,इसलिए ऐसी शिकायतें दी जा रही है। हमारा ग्रुप पिछले 25 वर्षों से कार्यरत है और हमने अब तक 20,000 से अधिक प्रॉपर्टी डील की हैं। आज तक हमारे ऊपर किसी भी ग्राहक या व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का कोई विवाद नहीं रहा है। हमारे ग्रुप की नींव से लेकर इमारत तक हर काम ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ किया गया है। अभी हम इस शिकायत पर कुछ नहीं बोलना चाहते यदि किसी भी अधिकृत संस्था द्वारा हमसे औपचारिक रूप से कोई स्पष्टीकरण मांगा जाता है, तो हमारी लीगल टीम विधिवत उसका उत्तर देगी। फ़िलहाल हमे ऐसी कोई शिकायत की जानकारी नहीं मिली है।
शिकायतकर्ता: हम तो पहले दिन से फरियाद लगा रहे हैं,जिसे यह भौंकना कह रहे हैं। हाथी तो नहीं कहेंगे,मोटी चमड़ी है। तभी इस कदर लोगों को ठग रहे हैं। अब जाकर पारदर्शिता से कार्रवाई शुरू हुई है। रॉयल सिटी के ये तत्कालीन निदेशक एक ऐसा एविडेंस दें जिसमें हमने यह जीपीए कर्रवाई हो। हम न तहसील दफ्तर गए,न हमारे साइन है और न तहसीलदार के सामने फोटो। कोई इनसे पूछे कि कैसे किस सैटिंग से बिना साइन के,हमारे हस्ताक्षरों की जगह खाली रखकर यह जीपीए करवाई गई। इन्होंने हमारे साथ तो ठगी की ही है,उन भौले भाले लोगों के साथ जिन्हें इन्होंने हमारी फर्जी जीपीए लाखों करोड़ों में प्लॉट बेच दिए। आखिर में तो उनकी रजिस्ट्री गलत साबित होगी और खामियाजा तो उनको भुगतना होगा। ये तो ठगी के पैसे पहले ही उनसे हड़प चुके है। हम तो उन लोगों से भी अपील करते है कि तुरंत अपनी रजिस्ट्री चेक करवाए कि कहीं हमारी फर्जी जीपीए पर तो उनकी रजिस्ट्री नहीं हुई और तुरंत पुलिस में इन आरोपियों के खिलाफ शिकायत देकर ठगी की एफआईआर दर्ज करवाएं। शिकायतकर्ता