Thursday, August 14, 2025

“उस दिन मेरी बहन रोई थी… और मैं टूट गया था”: अरुण सूद

17 तारीख की सुबह जब शहर गहरी नींद में था, उस समय फोन बजा। दूसरी तरफ मेरी बहन थी – कांपती हुई आवाज़ में सिर्फ एक वाक्य: “एक्सीडेंट हो गया है… जल्दी आओ…” मेरा भांजा – जिसे अपनी संतान की तरह मानता था – एक सडक़ हादसे में दुनिया छोड़ गया। उस पल जो टूटा, वह सिर्फ एक परिवार नहीं था, वह एक इंसान की पूरी मानसिक स्थिति थी। “अगर मैं खुद भी चुनाव लड़ रहा होता, तब भी प्रचार नहीं करता। मेरी बहन से प्यारा इस दुनिया में कोई नहीं है।” – ये कहते हुए अरुण सूद की आंखें भर आती हैं। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने संजय टंडन के लिए खुलकर प्रचार क्यों नहीं किया, तो वे चुप हुए… और फिर धीरे से बोले – “मेरे अंदर उस वक्त वो ताक़त नहीं थी। मैं बिखर चुका था। हां, संजय टंडन ने कहा कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, और इस बात ने मुझे और भी दुखी किया। लेकिन क्या कोई समझ सकता है कि मैंने क्या खोया?”

“हमारे यहां कोई हारता नहीं…”

- Advertisement -

चुनाव में संजय टंडन की हार पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा – “हमारी पार्टी में कोई एक व्यक्ति न तो जीतता है, न हारता है। हार या जीत पार्टी की होती है, हम सब मिलकर चलते हैं।” संजय टंडन के साथ मतभेद या दूरी?
अरुण सूद बताते हैं कि सांसद टिकट के लिए तीन नाम – संजय टंडन, सत्यपाल जैन और उनका अपना नाम – पार्टी हाईकमान को भेजे गए थे। हाईकमान ने संजय टंडन के नाम पर मुहर लगाई, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। “टिकट के बाद मैं खुद टंडन जी से मिलने गया, पार्टी प्रचार की जिम्मेदारी उठाई। शहर को 94 हिस्सों में बांटा, रोडमैप बनाया, बड़ी रैलियों की योजना तैयार की। दिन में 10-10 घंटे बैठकर मेहनत की। संजय टंडन का बेटा भी आया और प्लानिंग की तारीफ की।”

“मेरे सुझावों को अनदेखा किया गया”

अरुण सूद यह भी बताते हैं कि उन्होंने टंडन जी को कई जमीनी सुझाव दिए:
– “सुबह 6 बजे ग्रीन बेल्ट में लोगों के बीच जाइए…”
– “व्यापारियों से 50 मिनट की नहीं, 5 मिनट की दिल से बात कीजिए…”
– “स्थानीय व्यक्ति को मंच पर बोलने दीजिए…”

लेकिन उन्हें लगता है कि उनके सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया गया। “मैंने कहा था कि अगर आप व्यापारियों के सामने खड़े होकर सिर्फ इतना कह दो कि छह महीने दो, सारी समस्याएं हल करूंगा– तो पूरा वोट बैंक साथ खड़ा
हो जाता। लेकिन वो मौका चला गया।”

फिर आया एक और झटका…

अरुण सूद कहते हैं कि अचानक उन्हें प्रचार प्रमुख के पद से हटा दिया गया, और संजय टंडन की अपनी टीम, जिसमें उनका बेटा भी शामिल था, सामने आ गई। “मैं चुप रहा… क्योंकि मैंने पहले ही एक बहुत बड़ा झटका झेला था। राजनीति मेरे लिए उस समय प्राथमिकता नहीं थी। मैं टूट चुका था, और उस टूटे मन से कोई राजनीति नहीं हो सकती थी।”

“राजनीति रिश्तों से बड़ी नहीं हो सकती”

यह कहानी किसी राजनीतिक मतभेद की नहीं है – यह उस संघर्ष की कहानी है जब एक नेता अपने निजी दु:ख और पार्टी जिम्मेदारियों के बीच फंसा रह जाता है। अरुण सूद की चुप्पी को भले कुछ ने आलोचना माना हो, लेकिन उसके पीछे का कारण जानने के बाद हर संवेदनशील हृदय बस यही कहेगा — “कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं जो प्रचार के शोर में नहीं छिपते।”

E-Paper
RELATED ARTICLES

Most Popular




More forecasts: oneweather.org