Thursday, August 14, 2025

पंजाब का कृषि और वित्तीय संकट: केंद्र से राहत न मिलने पर किसानों और कर्मचारियों की बढ़ती पीड़ा

भरत अग्रवाल, चंडीगढ़ दिनभर: देश के अन्नदाता कहे जाने वाले पंजाब के किसान और कर्मचारी आज दोहरी मार झेल रहे हैं , एक ओर खेतों में दिन-रात मेहनत करने के बावजूद उन्हें केंद्र सरकार से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिल रही, तो दूसरी ओर राज्य के कर्मचारी भी लगातार उपेक्षा और वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। यह कहना हैं नेहरू युवा केंद्र के पूर्व वाइस चेयरमैन अमरदीप सिंह चीमा का। इस विषय पर नेहरू युवा केंद्र के पूर्व वाइस चेयरमैन अमरदीप सिंह चीमा ने दिनभर न्यूज़ के पॉलिटिकल एडिटर तरलोचन सिंह को  हाल ही में दिए इंटरव्यू में कहा कि पंजाब को भारत का ‘कृषि प्रधान राज्य’ कहा जाता है, लेकिन विडंबना यह है कि यहां के किसान सरकारी उपेक्षा का शिकार बने हुए हैं। राज्य में लगभग 35 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं और धान (कनक और जीरी) की खेती होती है। इसके बावजूद केंद्र सरकार की ओर से न तो कोई सीधी राहत दी जा रही है, न ही लंबित कृषि-संबंधी प्रस्तावों को मंज़ूरी मिल रही है।
चीमा ने कहा कि पंजाब के किसानों को केंद्र सरकार से कोई भी ठोस सहायता नहीं मिल रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि राज्य सरकार प्रभावी ढंग से केंद्र से फंड प्राप्त करने में असमर्थ रही है। अगर एक साल के लिए भी किसान गेहूं या धान न बोएं, तो केंद्र सरकार खुद आकर पूछेगी कि खेती क्यों छोड़ी गई, और तब वह सहायता देने के लिए मजबूर होगी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास कई ऐसे प्रस्ताव लंबित हैं जिनसे पंजाब के कृषि क्षेत्र को मजबूती मिल सकती है, लेकिन वे फाइलों में दबे पड़े हैं।
मंडियों में किसानों के साथ अन्याय: 
मंडी व्यवस्था पर भी अमरदीप सिंह चीमा ने चिंता जताई। उन्होंने कहा कि किसान जब मंडियों में अपनी उपज बेचने जाता है, तो वहां आढ़ती पहले बाजार भाव देखता है और फिर बिना गुणवत्ता जांचे ही कीमत तय करता है। इस कारण किसान को लागत से भी कम दाम पर अपनी उपज बेचनी पड़ती है। उन्होंने मंडी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता पर भी सवाल उठाए और कहा कि जब तक मंडियों को आधुनिक और पारदर्शी नहीं बनाया जाता, किसानों को उनका हक नहीं मिल सकता।
कर्मचारी भी त्रस्त, वेतन और भत्ते लटकाए गए:
चीमा के मुताबिक राज्य के लाखों कर्मचारी भी इन दिनों गहरे आर्थिक संकट में हैं। समय पर वेतन न मिलना, भत्तों और मेडिकल क्लेम्स का लंबित रहना, सेवानिवृत्त कर्मियों की पेंशन में देरी ये सब गंभीर स्थिति को दर्शाते हैं। अब सरकार जिला वाईज  वेतन बाँट रही है। यह बताता है कि राज्य की वित्तीय स्थिति कितनी कमजोर हो चुकी है। कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई, परिवार का खर्च और स्वास्थ्य देखभाल जैसे जरूरी काम भी प्रभावित हो रहे हैं। यह स्थिति किसी भी प्रगतिशील राज्य के लिए शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि अब नेताओं को केवल मंचों पर बातें करने की बजाय ज़मीनी स्तर पर कर्मचारियों और किसानों की समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए।
समाधान क्या हो?
अमरदीप सिंह चीमा ने इस संकट से उबरने के लिए कुछ व्यवहारिक और सार्थक सुझाव दिए:
  • – राज्य और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय: राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर दोनों सरकारों को किसानों और कर्मचारियों के हित में मिलकर काम करना चाहिए।
  • – कृषि फंडिंग के लिए ठोस नीति और लॉबिंग:  राज्य सरकार को दिल्ली में मजबूत लॉबिंग कर केंद्र से लंबित फंड और योजनाएं पास करवानी चाहिए।
  • – मंडी व्यवस्था में पारदर्शिता: ई-मंडी जैसी डिजिटल प्रणाली अपनाकर किसानों को उचित मूल्य दिलाया जा सकता है।
  • – कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा: वेतन और भत्तों का समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए बजट में प्राथमिकता दी जाए। साथ ही एक स्थायी कोष बनाया जाए जो आपात स्थिति में काम आए।
पंजाब का यह कृषि और वित्तीय संकट महज एक राज्य का मसला नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के खाद्य सुरक्षा तंत्र को प्रभावित करने वाला मुद्दा है। जब तक किसानों और कर्मचारियों की समस्याओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती, तब तक ‘नए भारत’ का सपना अधूरा रहेगा। अमरदीप सिंह चीमा की बातें सिर्फ शिकायत नहीं हैं, बल्कि समाधान की दिशा भी दिखाती हैं। अब समय आ गया है कि सरकारें राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर लोगों के हित में फैसले लें। पंजाब को आज एक ऐसा नेतृत्व चाहिए जो न केवल दूरदर्शी हो, बल्कि जमीन से जुड़ा भी हो जो नारे नहीं, बल्कि नीतियों से बदलाव लाए।
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