हिमांशु शर्मा, चंडीगढ़: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में नगर निगम की तमाम कोशिशें, आदेश और दावे ज़मीनी हकीकत के सामने बौने साबित हो रहे हैं। निगम के दस्तावेज़ों में भले ही प्लास्टिक कैरी बैग पर पूर्ण प्रतिबंध है, लेकिन चंडीगढ़ की सब्ज़ी मंडियों में जो हकीकत देखने को मिल रही है, वो इस प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां उड़ा रही है। चंडीगढ़ दिनभर की टीम ने जब सच्चाई जानने के लिए एक रियलिटी चेक किया, तो सिस्टम की नाकामी और लापरवाही की परतें खुद-ब-खुद खुलती चली गईं। टीम ने जब शहर की प्रमुख सब्जी मंडीं सेक्टर 26 का दौरा किया तो देखा कि अधिकांश फल और सब्जी विक्रेता धड़ल्ले से बैन किए गए प्लास्टिक कैरी बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं। ना कोई डर, ना कोई रोक-टोक। ग्राहक आते हैं, सामान लेते हैं और बिना किसी झिझक के प्लास्टिक कैरी बैग में सामान लेकर रवाना हो जाते हैं।
जब हमारी टीम ने मौके पर सैनेटरी इंस्पेक्टर से संपर्क किया तो उन्होंने रूटीन चेकिंग की बात कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि हम नियमित जांच करते हैं, किसी को नहीं बख्शा जाएगा। लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। वहीं, एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, हर सुबह सप्लायर बैन कैरी बैग लेकर आता है और खुलेआम बेचता है। यह किसी से छुपा नहीं है, यहां तक कि सैनिटरी इंस्पेक्टर भी सब जानते हैं, लेकिन सब मिलीभगत से होता है। अगर उनकी सहमति न हो, तो यह सप्लाई रुक जाए। इतना ही नहीं, जांच के दौरान यह भी सामने आया कि लगभग हर दुकानदार और वेंडर के पास भारी मात्रा में बैन किए गए कैरी बैग पहले से स्टॉक में मौजूद रहते हैं। कुछ दुकानों के पीछे इन थैलों की पूरी बोरियां भी रखी मिलीं, जिससे यह साफ है कि यह सिलसिला रोजाना चलता है, न कि इक्का-दुक्का दिन का मामला है।
चौंकाने वाली बात यह है कि नगर निगम हर साल लाखों रुपये स्वच्छता और प्लास्टिक फ्री सिटी अभियान पर खर्च करता है। जगह-जगह बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाए जाते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं, बच्चों को प्लास्टिक के दुष्परिणामों पर शिक्षित किया जाता है, लेकिन इन सब प्रयासों का कोई असर ग्राउंड लेवल पर दिखाई नहीं दे रहा। इसका सबसे बड़ा कारण है कि जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही, आंख मूंदकर काम करना और भ्रष्ट व्यवस्था। जब जांचकर्ता मौके पर हों, तो थोड़ी देर के लिए चीज़ें छुपाई जाती हैं, लेकिन बाकी दिनों में सिस्टम पूरी तरह से ढीला नजर आता है।
प्रश्न जो अब खड़े हो गए हैं:
– जब प्लास्टिक कैरी बैग पूरी तरह प्रतिबंधित हैं, तो यह रोजाना मंडियों में कैसे पहुंच रहे हैं?
-क्या सप्लायर्स पर कोई कार्रवाई नहीं होती? अगर होती है, तो वे फिर से सप्लाई कैसे शुरू कर देते हैं?
– नगर निगम के सैनेटरी इंस्पेक्टर क्या सिर्फ तनख्वाह लेने के लिए हैं?
– आम जनता को पर्यावरण के नाम पर तो जागरूक किया जा रहा है, लेकिन प्रशासनिक ढांचे में जिम्मेदारी कौन लेगा?
चंडीगढ़ के पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह सिर्फ कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि भविष्य की पीढिय़ों के साथ धोखा है। प्लास्टिक से पर्यावरण को जो नुकसान पहुंचता है, वह किसी से छुपा नहीं है। लेकिन अगर सरकारी तंत्र ही आंखें मूंदे रहे, तो आम जनता से उम्मीद करना बेमानी होगा।
अब वक्त आ गया है कि:
– नगर निगम सख्ती से जांच करे।
– मंडियों में छापेमारी की जाए।
– बैन बैग बेचने वालों पर आपराधिक मामला दर्ज हो।
-सैनेटरी इंस्पेक्टरों की जवाबदेही तय की जाए। और सबसे जरूरी, इस मिलीभगत की चेन को तोड़ा जाए।