हरियाणा सरकार द्वारा हाउसिंग बोर्ड को हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) में मर्ज करने का फैसला दो बड़ी अड़चनों के चलते फिलहाल अटक गया है। यह हाउसिंग बोर्ड पिछले 54 वर्षों से प्रदेश में सक्रिय है। इसे 1971 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल ने ‘नो प्रॉफिट-नो लॉस’ नीति के तहत गरीबों को सस्ते मकान उपलब्ध कराने के लिए गठित किया था। सरकार ने अब बोर्ड का HSVP में विलय करने का निर्णय लिया है और इसके लिए लगभग 200 करोड़ रुपये में समझौता भी हो चुका है। लेकिन, इसे अमल में लाने से पहले दो कानूनी अड़चनों को पार करना जरूरी हो गया है।
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कैबिनेट की मंजूरी जरूरी
हरियाणा में किसी भी बड़े फैसले को लागू करने से पहले उसे राज्य कैबिनेट की स्वीकृति लेनी होती है। जब तक मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा कैबिनेट की बैठक बुलाकर इस प्रस्ताव को पास नहीं किया जाता, तब तक मर्जिंग की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।- Advertisement - -
विधानसभा में एक्ट संशोधन अनिवार्य
HSVP एक्ट में बिना संशोधन किए हाउसिंग बोर्ड को उसमें मिलाना कानूनी रूप से संभव नहीं है। इसलिए सरकार को पहले विधानसभा में इस एक्ट में संशोधन लाना होगा। यदि समय न हो तो इसके लिए सरकार अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) भी ला सकती है।
सरकार ने क्यों लिया मर्ज करने का फैसला?
फ्लैट की घटिया क्वालिटी
हाउसिंग बोर्ड ने अब तक करीब 1 लाख फ्लैट बनाए और बेचे हैं, लेकिन इनमें से 10 हजार से ज्यादा फ्लैट अब भी खाली हैं। फ्लैटों की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठते रहे, जिससे लोगों की रुचि कम होती गई और बोर्ड की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई। इसे देखते हुए सरकार ने इसे HSVP में मिलाने का फैसला किया।
100 करोड़ की देनदारी, 200 करोड़ की संपत्ति
बोर्ड पर 100 करोड़ रुपये की देनदारी है, जिसे चुकाने के लिए HSVP से आर्थिक मदद ली गई है। इसके बदले में हाउसिंग बोर्ड की लगभग 200 करोड़ रुपये की संपत्ति HSVP को ट्रांसफर की जाएगी। इसमें लगभग 300 एकड़ जमीन और 10 हजार खाली फ्लैट शामिल हैं।
जमीन के सीमित स्रोत
हाउसिंग बोर्ड के पास अपनी खुद की जमीन नहीं होती। उसे तीन स्रोतों से जमीन मिलती है:
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प्राइवेट बिल्डरों की योजनाओं से 20% छोटे फ्लैट
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HSVP द्वारा विकसित सेक्टरों से 1–5 एकड़ जमीन
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नगर निकायों से सस्ती दर पर जमीन लेकर विशेष योजनाएं (जैसे पूर्व सैनिकों के लिए)
क्या होगा आम जनता पर असर?
इस विलय के बाद आम लोगों के लिए सस्ते मकान का सपना अधूरा रह सकता है, क्योंकि HSVP अपनी संपत्तियों की नीलामी करता है, जिनकी कीमतें अधिक बोली लगाने वालों के ही बस की होती हैं। हालांकि हाउसिंग बोर्ड ने भी हाल ही में ई-नीलामी से फ्लैट बेचने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन फिर भी कीमतें निजी बिल्डरों से कम थीं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1971 में बने इस बोर्ड ने अब तक गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को घर मुहैया कराने के लिए कार्य किया। लेकिन समय के साथ फ्लैट की गुणवत्ता, आर्थिक संकट और मांग में कमी के चलते इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े हो गए।
अब सरकार चाहती है कि HSVP के साथ विलय कर इन संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जाए, लेकिन जब तक कानूनी अड़चनें दूर नहीं होतीं, तब तक यह प्रक्रिया रुकी रहेगी। सरकार की नजर अब अगली कैबिनेट बैठक और विधानसभा सत्र पर है, जहां से इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जा सकेगा।