बीजेपी पार्षद की छोटी सी शिकायत पर जेई को सस्पेंड करने वाले नगर निगम
कमीश्नर ने करोड़ो रूपए के घोटाले पर नहीं की कार्रवाई , शहर में हो रही
किरकिरी
भरत अग्रवाल.चंडीगढ़ दिनभर।
चंडीगढ़: नगर निगम के इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में से एक माने जा रहे
कम्युनिटी सेंटर फ्री बुकिंग घोटाले को लेकर अब तक कांग्रेस और भारतीय
जनता पार्टी (भाजपा) की रहस्यमयी चुप्पी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी
हुई है। आमतौर पर नगर निगम में 100 रूपए के मामूली खर्च पर भी तूफान खड़ा
कर देने वाली ये दोनों प्रमुख पार्टियाँ इस करोड़ों रुपये के घोटाले पर
शांत हैं।
जनता और सामाजिक संगठनों के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस घोटाले
में कहीं न कहीं दोनों दलों के नेता और पार्षद भी शामिल हैं, या फिर
उन्हें डर है कि अगर जांच आगे बढ़ी तो उनकी भी भूमिका उजागर हो सकती है?
एक स्थानीय व्यापारी ने गुस्से में कहा कि जब निगम की पार्किंग पॉलिसी
में 50 रूपए की बढ़ोतरी होती है, तब धरना प्रदर्शन होते हैं। लेकिन जब
करोड़ों का घोटाला होता है, तो सभी नेता गायब हो जाते हैं।
इस पूरे मामले में केवल नगर निगम पार्षद योगेश ढींगरा ही ऐसे नेता हैं,
जिन्होंने खुलकर घोटाले का विरोध किया है और निष्पक्ष जांच की मांग की
है। उन्होंने कहा कि चाहे घोटाला 100 रूपए का हो या 100 करोड़ रूपए का,
यह जनता का पैसा है और इसका जवाब हर हाल में देना होगा।
ढींगरा ने कांग्रेस और भाजपा की चुप्पी पर नाराजगी जताते हुए कहा कि वे
अकेले इस लड़ाई को जनता के सामने लाएंगे, चाहे कोई पार्टी उनका साथ दे या
नहीं। उन्होंने इस बात पर भी चिंता जाहिर की कि नगर निगम के अधिकारी
उन्हें इस मामले में अपेक्षित सहयोग नहीं दे रहे हैं।
सिर्फ ट्रांसफर, निलंबन नहीं : अधिकारियों को बचाने की कोशिश?
घोटाले में संलिप्त नगर निगम के बुकिंग ब्रांच अधिकारियों और कर्मचारियों
को सिर्फ ट्रांसफर किया गया है, जबकि किसी के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं
हुई। पार्षद ढींगरा ने यह आरोप लगाया कि अधिकारियों को ट्रांसफर कर,
मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है, ताकि असली गुनहगारों तक कार्रवाई
न पहुंच सके।
छोटी शिकायत पर सस्पेंशन, लेकिन करोड़ों के घोटाले पर चुप क्यों?
ढींगरा ने कहा कि नगर निगम की हॉउस मीटिंग में कमीश्नर अमित कुमार ने
बीजेपी पार्षद के सिर्फ मौखिक शिकायत पर ही कर्मचारियों को निलंबित या
टर्मिनेट किया गया, वहीं इतने बड़े घोटाले में केवल स्थानांतरण ही क्यों
किया गया? इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या नगर निगम कमिश्नर पर
राजनीतिक दबाव है? बता दें कि बीजेपी के एक पार्षद ने पानी की सप्लाई
पर्याप्त न आने की शिकायत नगर निगम हाउस मीटिंग में की थी। उस पार्षद ने
मौखिक रूप से एक कर्मचारी के खिलाफ शिकायत की थी, जिस पर कमिश्नर ने
तत्काल सस्पेंशन या टर्मिनेशन के निर्देश दे दिए। लेकिन जब बात करोड़ों
के घोटाले की आई, तो केवल ट्रांसफर करके मामले को दबा दिया गया। इस दोहरे
रवैये पर अब नगर निगम की भूमिका भी शक के घेरे में आ गई है।