प्रधानमंत्री की सिख कौम के प्रति सोच को लेकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक
आयोग के चेयरमैन का बड़ा खुलासा
भरत अग्रवाल
चंडीगढ़: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को कभी भी “मसीहा” नहीं माना,
बल्कि हमेशा “सेवक” के रूप में देखा है। यह बात राष्ट्रीय अल्पसंख्यक
आयोग के चेयरमैन सरदार इकबाल सिंह लालपुरा ने कही। उन्होंने ‘चंडीगढ़
दिनभर’ के पॉलिटिकल एडिटर तरलोचन सिंह को दिए एक विशेष साक्षात्कार में
यह खुलासा किया।
लालपुरा ने बताया कि जब शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने
प्रधानमंत्री मोदी को कौमी सेवा अवार्ड पत्र में “सिख कौम का मसीहा”
लिखा, तो खुद मोदी ने इसमें “मसीहा” शब्द हटाकर “सेवक” लिखने को कहा।
उन्होंने कहा कि मोदी जी सिख कौम की सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं, और
इस पर गर्व महसूस करते हैं।
इंटरव्यू के दौरान लालपुरा ने बताया कि मोदी जी ने उन्हें एक किस्सा
सुनाया था जब वे सिख धर्म को करीब से जानने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने
कहा, मैं करीब दो साल तक सिखों के बीच रहा। एक बार टैक्सी में बैठा था तो
ड्राइवर ने पूछा, सजे जाना है या खबे? मुझे इन शब्दों का मतलब भी नहीं
आता था। तभी समझ आया कि अगर सिखों के बीच रहना है तो गुरबाणी पढऩी
पड़ेगी, गुरमुखी सीखनी होगी और सिख इतिहास को समझना होगा।
लालपुरा के अनुसार, मोदी न सिर्फ सिख इतिहास का गहरा अध्ययन करते हैं
बल्कि सिखों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। वो सोचते हैं कि सिख
कौम के लिए क्या कर सकते हैं। वे हर बार सेवा की भावना से आगे बढ़ते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि एक बार जब वे कुछ पंजाबी नेताओं के साथ मोदी से
मिले और किसी नेता ने कहा कि पंजाब से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे, तो
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा, रिजल्ट की चिंता मत करो, सेवा
करो। इधर-उधर ध्यान मत दो, सिर्फ सेवा करो।
पंजाब सरकार की हुकूमत चल रही है, कानून का राज नही :
लालपुरा के अनुसार , आज पंजाब में झूठ प्रधान है, अंधेर गर्दी मची हुई
है, पंजाब सरकार की हुकूमत चल रही है, कानून का राज नहीं। उन्होने कहा कि
मैं भी इस अराजक सिस्टम का शिकार बना। लालपुरा ने बताया कि उन्हें
रिटायरमेंट बेनिफिट्स पाने के लिए 8 साल इंतज़ार करना पड़ा। साल 2018 में
रिटायर हुआ, लेकिन मेरी मेहनत की कमाई मुझे 8 साल बाद कोर्ट के आदेश से
मिली। वो भी वकीलों की फीस में चली गई। जब मेरे जैसे पद पर रहे व्यक्ति
को अदालत जाना पड़े, तो आम आदमी की हालत का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
सरकार और प्रशासन पर तीखा हमला करते हुए उन्होंने कहा कि नीतिगत गलतियों
का बोझ जनता और कर्मचारियों को उठाना पड़ता है। गलत फैसलों का खामियाज़ा
आम आदमी भुगतता है। अफसर एसी दफ्तरों में बैठकर चाय पीते हैं, जबकि जनता
मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिसती है।
पंजाब में अफसरशाही बेलगाम, जनता बेहाल:
पंजाब के हालात पर उन्होंने कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था बुरी तरह
चरमरा चुकी है। पंजाब में लॉ एंड ऑर्डर नाम की चीज़ नहीं बची। अफसरशाही
बेलगाम हो चुकी है। न्याय सिर्फ भाषणों और फाइलों तक सीमित रह गया है।
पीडि़तों की कोई सुनवाई नहीं।