Wednesday, August 13, 2025

हाईकोर्ट की सख्ती: शादीशुदा होने पर दिव्यांग बेटी को पेंशन से वंचित करना गलत, चंडीगढ़ प्रशासन को लगाई फटकार

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में चंडीगढ़ प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। यह मामला एक दिव्यांग महिला पूनम से जुड़ा है, जिसे सिर्फ इसलिए फैमिली पेंशन से वंचित कर दिया गया क्योंकि वह शादीशुदा है। पूनम 70 प्रतिशत दिव्यांग है और खुद कोई आमदनी नहीं कर सकती। उसके पति भी 100 प्रतिशत दिव्यांग हैं।

पूनम के पिता सरकारी नौकरी में थे और 1999 में रिटायर हुए थे। उनका निधन 2014 में हो गया। पिता की मौत के बाद पूनम ने फैमिली पेंशन के लिए सभी जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन किया, लेकिन अकाउंट्स ऑफिसर ने उसके पति की आय का हवाला देकर पेंशन देने से इनकार कर दिया। इस पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया और प्रशासन के फैसले को “बिना सोचे-समझे और यांत्रिक” करार दिया।

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हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस एचएस ग्रेवाल शामिल थे, ने कहा कि यह फैसला असंवेदनशील और कानून के खिलाफ है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ शादी हो जाने से किसी दिव्यांग बेटी का पेंशन पाने का हक खत्म नहीं हो जाता। अगर वह खुद कमाने में असमर्थ है, तो उसे पेंशन का पूरा अधिकार है।

अदालत ने पंजाब सिविल सर्विस नियम 6.17 का हवाला देते हुए कहा कि जो बेटा या बेटी मानसिक या शारीरिक रूप से इतना दिव्यांग हो कि वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सके, उसे 25 साल की उम्र के बाद और शादी होने के बाद भी फैमिली पेंशन मिलनी चाहिए।

कोर्ट ने प्रशासन की याचिका खारिज करते हुए आदेश दिया कि पूनम को तुरंत पेंशन दी जाए और अब तक की बकाया राशि पर 9 प्रतिशत सालाना ब्याज भी दिया जाए। इसके साथ ही चंडीगढ़ प्रशासन को पूनम को 25,000 रुपये कोर्ट खर्च के रूप में भी देने होंगे।

यह फैसला उन हजारों दिव्यांग महिलाओं के लिए राहत और उम्मीद की किरण है जो अपने अधिकारों से वंचित रह जाती हैं। अदालत ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि दिव्यांगता को नजरअंदाज कर सिर्फ शादी के आधार पर कोई फैसला लेना न्याय के खिलाफ है।

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