पंजाब के सरकारी स्कूलों में अब बच्चों को तेलगू भाषा सिखाई जा रही है। यह पहल केंद्र सरकार के “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” अभियान के तहत की गई है, जिसमें अलग-अलग राज्यों के छात्र एक-दूसरे की भाषाओं और संस्कृतियों से जुड़ सकें। यह समर कैंप “भारतीय भाषा संभव” कार्यक्रम का हिस्सा है, जो 26 मई से 5 जून 2025 तक आयोजित किया जा रहा है। इसमें कक्षा 6वीं से 10वीं तक के छात्रों को शामिल किया गया है।
इस योजना के तहत पंजाब में जहां तेलगू सिखाई जा रही है, वहीं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के स्कूलों में पंजाबी भाषा पढ़ाई जा रही है। इसका उद्देश्य है कि विद्यार्थी अन्य राज्यों की भाषा और संस्कृति को समझ सकें और देश की विविधता को करीब से जान सकें।
बच्चों में तेलगू सीखने को लेकर उत्साह
अमृतसर के जिला शिक्षा अधिकारी हरभगवंत सिंह वड़ैच ने बताया कि जिले के कई सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन माध्यम से तेलगू सिखाने की शुरुआत हो चुकी है। उन्होंने बताया कि यह प्रयोग बच्चों के भविष्य के लिए उपयोगी हो सकता है, क्योंकि यदि उन्हें आगे चलकर दक्षिण भारत में पढ़ाई या काम के लिए जाना पड़े तो भाषा का ज्ञान उनके लिए सहायक होगा। उन्होंने यह भी बताया कि फिलहाल यह एक सात दिवसीय समर कैंप के रूप में आयोजित किया जा रहा है, और बच्चों में इसे लेकर उत्साह भी देखा जा रहा है।
शिक्षक संघ का विरोध – चौथी भाषा क्यों?
जहां एक ओर सरकार इसे सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जरिया बता रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षकों का एक वर्ग इस फैसले का विरोध कर रहा है। डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) के प्रदेश सचिव अश्विनी अवस्थी ने कहा कि पहले से ही बच्चे तीन भाषाएं—पंजाबी, हिंदी और अंग्रेज़ी—पढ़ रहे हैं। अब चौथी भाषा थोपना बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई की गुणवत्ता, दोनों पर असर डालेगा।
अवस्थी का यह भी कहना है कि पंजाब के सरकारी स्कूल पहले ही शिक्षकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। अब शिक्षकों पर अतिरिक्त भाषा पढ़ाने की जिम्मेदारी डालकर उनका मानसिक बोझ बढ़ाया जा रहा है।
शिक्षकों की मांगें क्या हैं?
शिक्षक संगठन की तरफ से कुछ अहम मांगें भी सामने आई हैं:
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तेलगू भाषा को अनिवार्य न बनाकर ऐच्छिक किया जाए, ताकि जो छात्र इसे सीखना चाहें, वही इसमें हिस्सा लें।
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पंजाबी भाषा की शिक्षा को और मज़बूती से लागू किया जाए, क्योंकि अब बच्चे अपनी मातृभाषा से धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं।
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केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति में पहले से तीन-भाषा फार्मूला लागू है, ऐसे में चौथी भाषा की कोई ज़रूरत नहीं बनती।