Thursday, August 14, 2025

मानसिक रोगियों से 20 लाख की सिक्योरिटी पर हाईकोर्ट नाराज़: कहा- जरूरतमंदों को इलाज से वंचित करना अमानवीय

चंडीगढ़ के सेक्टर-31 में स्थित ‘समूह उत्थान सोसाइटी’ द्वारा मानसिक रोगियों से 20 लाख रुपये की सिक्योरिटी राशि मांगने के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने इसे अत्यधिक और अमानवीय बताते हुए कहा कि इस तरह की नीति के चलते कई जरूरतमंद मरीज इलाज से वंचित हो रहे हैं, जो उनके मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।

मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की खंडपीठ ने यूटी प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह इस नीति पर दोबारा विचार करे। कोर्ट ने प्रशासन से कहा कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को गरिमा और समानता के साथ इलाज पाने का पूरा अधिकार है और किसी भी तरह की भेदभावपूर्ण या आर्थिक अड़चन उनके उपचार में नहीं होनी चाहिए।

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इस मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील आरएस बैंस और अन्य वकीलों ने तर्क दिया कि मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 की धारा 18 से 21 के तहत हर मानसिक रोगी को न्यायसंगत और सम्मानजनक इलाज पाने का अधिकार है। कोर्ट ने भी इस पर सहमति जताई और कहा कि इतनी भारी सिक्योरिटी राशि मांगना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह उन मरीजों के साथ अन्याय है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ‘समूह उत्थान सोसाइटी’ को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ की श्रेणी में माना जाएगा, क्योंकि इसकी गवर्निंग बॉडी में अधिकतर सदस्य यूटी प्रशासन से संबंधित हैं। इसलिए प्रशासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह मरीजों की सुविधा और अधिकारों की रक्षा करे।

कोर्ट ने यूटी प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह इस सोसाइटी की गवर्निंग बॉडी की आपात बैठक बुलाकर सिक्योरिटी राशि की अनिवार्यता पर पुनर्विचार करे, विशेषकर उन मरीजों को ध्यान में रखते हुए जो इतनी राशि नहीं दे सकते। अब इस मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी, जिसमें कोर्ट देखेगा कि इस दिशा में क्या कदम उठाए गए हैं।

यह मामला सिर्फ एक संस्था की नीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तंत्र की संवेदनशीलता और समानता की परीक्षा है। कोर्ट की यह सख्ती इस बात की ओर इशारा करती है कि मानसिक रोगियों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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