चंडीगढ़ दिनभर
चंडीगढ़ :
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के तहत अग्रिम जमानत याचिका पर
सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि आरोपी को एफआईआर में किस प्रकार से आरोपित
किया गया या फंसाया गया, इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।
जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा कि सह-आरोपी द्वारा दिए गए प्रकटीकरण बयान का अंतिम
साक्ष्य मूल्य और उसकी स्वीकार्यता ट्रायल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आती
है। कोर्ट ने कहा, “ट्रायल के दौरान इसका फैसला किया जाना चाहिए। लेकिन
अग्रिम जमानत पर सुनवाई करते समय अदालत को यह देखना होगा कि आरोपी के खिलाफ
आरोपों की प्रकृति क्या है, उसे अपराध से जोड़ने वाले साक्ष्य क्या हैं और
उसमें आरोपी की भूमिका कितनी विशेष है।”
अग्रिम जमानत मामले में आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा आवश्यक
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इन बिंदुओं की प्रारंभिक जांच यह सुनिश्चित करने के
लिए जरूरी है कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग या गलत तरीके से इस्तेमाल न
हो। यह टिप्पणी बीएनएसएस, 2023 के तहत दायर एक ड्रग्स मामले की अग्रिम जमानत
याचिका की सुनवाई के दौरान की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का सह-आरोपी (जिससे
प्रतिबंधित पदार्थ बरामद हुआ) से कोई संपर्क या संबंध नहीं है। याचिकाकर्ता को
केवल सह-आरोपी के प्रकटीकरण बयान के आधार पर आरोपी बनाया गया।
जांच की प्रक्रिया को प्रभावित करना गलत
कोर्ट ने कहा कि जांच के प्रारंभिक चरण में, जब जांच जारी है, तो अदालतों को
संयम बरतना चाहिए और सबूतों की गहराई से जांच करने से बचना चाहिए। जस्टिस गोयल
ने कहा, “जांच एक गतिशील प्रक्रिया है और जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, साक्ष्य
विकसित होते हैं। अदालतों को व्यक्ति की स्वतंत्रता और न्याय के प्रभावी
प्रशासन के बीच संतुलन बनाना चाहिए।”
अभियोजन पक्ष के आरोप और अदालत का फैसला
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि याचिकाकर्ता को सह-आरोपी द्वारा दिए गए बयान के
आधार पर आरोपी बनाया गया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को प्रतिबंधित पदार्थ से
जोड़ने के लिए कोई अन्य साक्ष्य मौजूद नहीं है।
न्यायालय ने कहा, “याचिकाकर्ता घटनास्थल पर मौजूद नहीं था। सह-आरोपी के बयान
की सत्यता और महत्व ट्रायल के दौरान पूरी तरह परखा जाएगा। केवल इसी आधार पर
आरोपी को अग्रिम जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता, खासकर जब याचिकाकर्ता
अंतरिम सुरक्षा के तहत जांच में सहयोग कर चुका हो।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एनडीपीएस एक्ट के तहत अन्य दो मामलों में आरोपी
की संलिप्तता, उसे अग्रिम जमानत देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।
अदालत ने गुण-दोष के आधार पर याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने का आदेश दिया।