चंडीगढ़ दिनभर
चंडीगढ़ :
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि परिवार के एक सदस्य को
अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी मिल जाती है और उसकी सेवाएं समाप्त हो जाती
हैं, तो दूसरे परिवार के सदस्य को उसी आधार पर नौकरी की मांग करने का अधिकार
नहीं है।
मामला मार्केट कमेटी अहमदगढ़ का है, जहां अपीलकर्ता के पिता, जो सुपरवाइजर थे,
का 2012 में निधन हो गया। इसके बाद 2013 में उनके बेटे कासिफ खान को अनुकंपा
के आधार पर चपरासी के पद पर नियुक्त किया गया। हालांकि, कासिफ बार-बार ड्यूटी
से अनुपस्थित रहा, जिसके चलते विभागीय जांच के बाद 2016 में उसकी सेवाएं
समाप्त कर दी गईं।
इसके बाद, अपीलकर्ता ने अपने भाई की सेवाएं समाप्त होने के बाद अनुकंपा
नियुक्ति की मांग की, जिसे जिला मंडी अधिकारी ने 2022 में खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट का फैसला
जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस लपिता बनर्जी की बेंच ने कहा, *”अनुकंपा
नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को उस तात्कालिक वित्तीय संकट से बचाना है, जो
कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के कारण उत्पन्न होता है। यह संकट एक बार दूर हो
जाने पर दूसरे सदस्य को नौकरी देने की मांग नहीं की जा सकती।”*
सिंगल बेंच और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
सिंगल बेंच ने भी अपीलकर्ता की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि अनुकंपा
नियुक्ति केवल तत्काल संकट को दूर करने के लिए होती है और इसे परिवार के किसी
अन्य सदस्य को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने “उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य (1994)”* के सुप्रीम कोर्ट
के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि *”अनुकंपा नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14
और 16 के तहत समानता के अधिकार का अपवाद है। इसे कभी भी और किसी के लिए दावा
नहीं किया जा सकता।”