चंडीगढ़ दिनभर
चंडीगढ़ :
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट* ने कहा है कि बच्चे का “सामान्य निवास स्थान” यह
तय करेगा कि गार्जियनशिप और वार्ड एक्ट के तहत बच्चे की कस्टडी पर फैसला करने
का अधिकार किस न्यायालय को होगा, न कि बच्चे की “प्राकृतिक संरक्षकता”।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि गार्जियनशिप एंड वार्ड एक्ट (जीडब्ल्यूए) की धारा
9 के अनुसार, बच्चे की अभिरक्षा से संबंधित आवेदन उसी न्यायालय में दाखिल किया
जा सकता है, जिसके क्षेत्राधिकार में बच्चा सामान्य रूप से रहता हो। दूसरी ओर,
हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावकत्व अधिनियम (एचएमजीए) की धारा 6 बच्चों के
प्राकृतिक अभिभावकों से संबंधित है।
वर्तमान मामले में, एक पिता ने चंडीगढ़ गार्जियन जज के समक्ष अपनी बेटी की
कस्टडी के लिए याचिका दाखिल की। दूसरी ओर, मां ने यह दावा करते हुए याचिका को
चुनौती दी कि बच्ची सामान्य रूप से जालंधर में रहती है, इसलिए इस मामले में
चंडीगढ़ कोर्ट का अधिकार क्षेत्र नहीं बनता।
निचली अदालत ने मां की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि चूंकि माता-पिता
चंडीगढ़ में रहते हैं और 5 वर्ष से कम उम्र की बच्ची की कस्टडी आमतौर पर मां
के पास होती है, इसलिए चंडीगढ़ कोर्ट के पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार है।
हाईकोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे के निवास स्थान का निर्धारण मां या पिता के निवास
स्थान से नहीं किया जा सकता। यह तय किया गया कि बच्ची जून 2021 से जालंधर में
अपने नाना-नानी के साथ रह रही है और वहीं स्कूल में पढ़ाई कर रही है। इस
स्थिति को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ कोर्ट के आदेश को रद्द कर
दिया।
कोर्ट ने कहा कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की कस्टडी में मां की प्राथमिकता
बच्चे के कल्याण पर निर्भर करती है। लेकिन यदि मां किसी कारणवश बच्चे की
देखभाल के लिए उपयुक्त नहीं है, तो यह प्रावधान लागू नहीं होगा।