चंडीगढ़ :
पति से अलग रह रही महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत
पति की सहमति के बिना गर्भपात कराने का अधिकार है। हाईकोर्ट के जस्टिस कुलदीप
तिवारी ने यह फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि तलाक लिए बिना पति से अलग रह
रही महिला “वैवाहिक स्थिति में बदलाव” के तहत गर्भावस्था को समाप्त कर सकती है।
यह फैसला उस महिला की याचिका पर सुनाया गया, जिसने अपने पति से बिना सहमति लिए
गर्भपात की अनुमति मांगी थी। महिला का कहना था कि वह घरेलू हिंसा और दहेज की
मांग के कारण अपने पति से अलग रह रही है।
पति ने बेडरूम में लगाया था कैमरा, महिला ने किया विरोध
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि महिला को उसके ससुराल वालों और पति द्वारा
दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया। पति ने बेडरूम में पोर्टेबल कैमरा लगाकर
महिला के निजी पलों को रिकॉर्ड करने का भी प्रयास किया। इन परिस्थितियों के
कारण महिला ने अपने पति से अलग रहने का फैसला किया।
महिला के स्वास्थ्य का हवाला देकर मांगी अनुमति
याचिका में यह भी कहा गया कि अनचाही गर्भावस्था के कारण महिला के शारीरिक और
मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। इसके बाद हाईकोर्ट ने “वैवाहिक स्थिति
में परिवर्तन” की विस्तृत व्याख्या करते हुए फैसला सुनाया कि ऐसी परिस्थितियों
में महिला को पति की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
हाईकोर्ट ने तीन दिन में प्रक्रिया पूरी करने का दिया आदेश
हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए महिला को निर्देश दिया कि वह आदेश
मिलने के तीन दिनों के भीतर संबंधित मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) से संपर्क
करे। CMO को कानून के तहत गर्भपात की प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने के
आदेश दिए गए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला
जस्टिस तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया
है कि “विधवापन और तलाक” के साथ-साथ अन्य परिस्थितियों को भी “वैवाहिक स्थिति
में परिवर्तन” के तहत लाना चाहिए। इस आदेश में यह भी कहा गया कि अनचाही
गर्भावस्था महिलाओं पर शारीरिक और मानसिक बोझ डालती है और उनके भविष्य के
अवसरों को प्रभावित करती है।
महिला के अधिकारों की सुरक्षा का उदाहरण
यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के प्रति एक
महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि घरेलू हिंसा और
प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को अपने स्वास्थ्य और जीवन पर फैसला लेने का
अधिकार है।