Thursday, August 14, 2025

कमर्शियल मात्रा के मामले में ट्रायल में देरी पर जमानत का अधिकार: हाईकोर्ट

चंडीगढ़ :

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि
एनडीपीएस
एक्ट 1985 की धारा 37 के तहत कमर्शियल मात्रा के मामलों में भी ट्रायल में
अनावश्यक देरी के आधार पर जमानत दी जा सकती है। यह देरी अभियुक्त के मौलिक
अधिकारों का उल्लंघन मानी जाएगी।
हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

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जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा कि *एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के कठोर प्रावधानों
को आरोपी के शीघ्र ट्रायल के मौलिक अधिकार के संदर्भ में सावधानीपूर्वक
जांचना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक देरी को आरोपी
की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रभाव डालने का आधार नहीं बनाया जा
सकता।

इस फैसले के तहत कुलविंदर नामक याचिकाकर्ता ने नियमित जमानत के लिए याचिका
दायर की थी। उसके खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 22, 61, और 85 के तहत मामला
दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि कुलविंदर से कोई बरामदगी नहीं हुई और उसे
झूठे मामले में फंसाया गया। अदालत ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता पिछले 2 साल
8 महीने से अधिक समय से जेल में है और ट्रायल में लगातार देरी हो रही है।
कोर्ट की टिप्पणियां

– निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार: बिना कारण लंबे समय तक जेल में रखने से
न्याय और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
– जमानत का आधार: जहां ट्रायल में अनावश्यक देरी होती है, वहां आरोपी को
जमानत देना कानून और संविधान के अधिकारों के अनुरूप है।
– अपराधियों पर तलवार नहीं लटकाई जा सकती: किसी भी आरोपी को लंबे समय तक
अनिश्चितता में नहीं रखा जा सकता।

हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल में देरी के लिए जिम्मेदारी अभियुक्त पर नहीं डाली
जा सकती। ट्रायल कोर्ट के बार-बार समन और वारंट के बावजूद गवाहों का पेश न
होना, इस देरी का मुख्य कारण बना। ऐसे में, याचिकाकर्ता को जमानत देना उचित
होगा।

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