भरत अग्रवाल.चंडीगढ़ दिनभर।
मोहाली : साहिबजादा अजीत सिंह नगर (एसएएस नगर) में ट्रैवल एजेंट्स,
कंसल्टेंसी, टिकटिंग एजेंट्स, आईईएलटीएस कोचिंग संस्थानों और जनरल सेल्स
एजेंट्स ने ऐसा जाल बिछा रखा है, जिसमें स्थानीय और अन्य राज्यों के लोग ठगी
का शिकार हो रहे हैं। पुलिस रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस ठगी का कारोबार इतना
बड़ा हो चुका है कि औसतन रोजाना लगभग 10 लाख रुपए की धोखाधड़ी होती है। एक
ताजा आंकड़े के अनुसार, 1 अप्रैल 2024 से लेकर 31 अक्टूबर 2024 तक करीब 27
करोड़ 16 लाख रुपये की ठगी हो चुकी है, और यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।
एसएएस नगर पुलिस ने 1 अप्रैल 2024 से 31 अक्टूबर 2024 के बीच कुल 222 धोखाधड़ी
के मामले दर्ज किए हैं । इस बढ़ते धोखाधड़ी के संकट को लेकर प्रशासन का रवैया
अभी भी लापरवाह ही नजर आ रहा है। प्रशासन की कमान संभालने वाले अधिकारी इस
गंभीर समस्या के समाधान की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
बड़ी संख्या में लोग इस धोखाधड़ी का शिकार हो चुके हैं, लेकिन वे शिकायत दर्ज
कराने से हिचकिचाते हैं और अपनी किस्मत को दोष देते हुए चुपचाप घर बैठ जाते
हैं। एसएएस नगर में कुल 376 रजिस्टर्ड ट्रैवल एजेंट्स, कंसल्टेंसी, टिकटिंग
एजेंट्स, आईईएलटीएस कोचिंग संस्थान और जनरल सेल्स एजेंट्स हैं, जिनमें से
अधिकांश लोग अब इन रजिस्टर्ड लाइसेंस का इस्तेमाल करके इमिग्रेशन कंपनियों का
संचालन कर रहे हैं। इन कंपनियों में काम करने वाला स्टाफ विदेश में वर्क
परमिट, स्टडी वीजा और अन्य प्रकार के वीजा दिलाने का लालच देकर लोगों से पैसे
ऐंठता है।
एसएएस नगर प्रशासन की लापरवाही का भी यह एजेंट्स पूरा फायदा उठाते हैं।
लाइसेंस मिलने के बाद, प्रशासन की तरफ से इन एजेंट्स की नियमित चेकिंग नहीं की
जाती, जिससे ये लोग आसानी से अपनी धोखाधड़ी की गतिविधियां जारी रखते हैं। इन
एजेंट्स के पास इतना बड़ा नेटवर्क है कि वे अन्य राज्यों के लोगों से भी
संपर्क करते हैं, ताकि धोखाधड़ी के मामले में पकड़े जाने के चांस कम हों।
जब पीडि़त अपने पैसे वापस मांगते हैं, तो यह एजेंट्स उन्हें बहाना बनाते हुए
कहते हैं कि जमा की गई राशि का 80 प्रतिशत ‘सर्विस चार्ज’ के रूप में काट लिया
गया है और सिर्फ 20 प्रतिशत राशि वापस की जा सकती है। दूसरे राज्य के लोग इस
धोखाधड़ी को समझते हुए भी मामले से बचने के लिए कभी-कभी समझौता कर लेते हैं,
क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि इस जाल से कैसे बाहर निकला जाए।
अक्सर यह होता है कि जिस व्यक्ति के नाम पर एजेंसी का लाइसेंस होता है, वह
व्यक्ति कार्यालय में गायब रहता है। इसके बजाय, कार्यालय में काम करने वाला
स्टाफ ही इस धोखाधड़ी के पूरे सिस्टम को चला रहा होता है। पीडि़त व्यक्ति को
कभी-कभी तो यह भी नहीं पता होता कि उस एजेंसी का मालिक कौन है। जब शिकायत की
जाती है, तो एजेंसी के मालिक से संपर्क करना बेहद मुश्किल होता है और वह हर
बार बहाने बनाकर बचने की कोशिश करता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार इस धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों पर कब लगाम लगेगी?
क्या प्रशासन इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगा, या फिर यह धोखाधड़ी का खेल यूं
ही चलता रहेगा? उम्मीदें प्रशासन की तरफ टिकी हुई हैं, कि वह जल्द ही इस गंभीर
समस्या का समाधान निकालेगा और इन धोखाधड़ी करने वालों को सख्ती से नियंत्रित
करेगा।